

नयी दिल्ली : भारत में सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (MSME) औपचारिक ऋण तक सीमित पहुंच जैसी संरचनात्मक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इससे इनकी उत्पादकता प्रभावित हो रही है। हालांकि उनकी डिजिटल तैयारी एक उज्ज्वल बिंदु है। डेलॉयट इंडिया की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई।
कितना है योगदान : भारत में MSME सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में करीब 30 प्रतिशत का योगदान करते हैं। निर्यात में 45 प्रतिशत का योगदान देते हैं और 24 करोड़ से अधिक लोगों को आजीविका प्रदान करते हैं।
क्या है स्थिति : आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) समकक्षों की तुलना में डिजिटल तत्परता के उच्च स्तर का प्रदर्शन करने के बावजूद भारतीय एमएसएमई बड़े उद्यमों की उत्पादकता के केवल 18 प्रतिशत पर काम करते हैं, जबकि ओईसीडी अर्थव्यवस्थाओं में यह 45-70 प्रतिशत है। यह अंतर वैश्विक समकक्षों की तुलना में उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता को सीमित करता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ : डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि भारत का MSME क्षेत्र कई संरचनात्मक व सतत चुनौतियों से जूझ रहा है, जिनमें औपचारिक ऋण तक सीमित पहुंच, पुरानी प्रौद्योगिकी, नियामकीय जटिलताएं और बुनियादी ढांचे की बाधाएं शामिल हैं। ‘डेलॉयट के MSME चुनौती सूचकांक’ के अनुसार, सिले हुए परिधान जैसे क्षेत्रों में MSME को ऋण संबंधी गंभीर बाधाओं का सामना करना पड़ता है क्योंकि इस क्षेत्र से जुड़े जोखिम बहुत अधिक हैं। इनमें कम मुनाफा और तीव्र वैश्विक प्रतिस्पर्धा शामिल है, जिससे उनके उत्पादों की प्रतिस्थापना अत्यधिक कठिन हो जाती है।
भुगतान में देरी : इसके विपरीत रक्षा उपकरण, निर्मित धातु उत्पाद और टाइल तथा सैनिटरीवेयर, चुनौतियों के प्रति अपेक्षाकृत लचीले दिखाई देते हैं। ऐसा संभवतः विशिष्ट मांग या सरकारी खरीद समर्थन के कारण है। हालांकि, उन्हें भुगतान में देरी और कुशल श्रमिकों की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ‘डेलॉयट के राज्यवार एमएसएमई परिवेश सूचकांक’ के अनुसार महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्य एमएसएमई के लिए मजबूत केंद्र के रूप में उभरे हैं।