तेल रहित चावल की भूसी के निर्यात पर से प्रतिबंध हटाने की मांग

प्रतिबंध हटाने से निर्यात पुनर्जीवित होगा, किसानों की आय में सुधार होगा
चावल की भूसी
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नयी दिल्ली : घरेलू प्रसंस्करणकर्ताओं की सुरक्षा एवं किसानों की आय बढ़ाने के लिए खाद्य तेल उद्योग संगठन एसईए ने सरकार से तेल रहित चावल की भूसी (डीओआरबी) के निर्यात पर से प्रतिबंध हटाने की मांग की है। इनके निर्यात पर वर्तमान में सितंबर 2025 तक प्रतिबंध है। ‘सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ (एसईए) ने कहा कि उसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से तेल रहित चावल की भूसी के निर्यात पर जारी प्रतिबंध को हटाने की अपील की है। एसईए ने सरकार से आग्रह किया है कि प्रतिबंध को 30 सितंबर 2025 से आगे न बढ़ाया जाए। इसने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री के साथ-साथ खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रल्हाद जोशी, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और मत्स्य पालन, पशुपालन एवं दुग्ध मंत्री राजीव रंजन सिंह को पत्र लिखा है।

उद्देश्य पूरा नहीं हुआ : 2023 में लगाए गए प्रतिबंध से पहले देश सालाना पांच से छह लाख टन तेल रहित चावल की भूसी का निर्यात करता था, जिसकी कीमत लगभग 1,000 करोड़ रुपये थी। मुख्यतः एशियाई देशों को यह निर्यात किया जाता था ताकि चारे और दूध की कीमतों को स्थिर रखा जा सके। प्रोटीन मील की कीमतों में करीब 50 प्रतिशत की गिरावट आई है, फिर भी दूध की कीमतें बढ़ रही हैं, जबकि तेल रहित चावल की भूसी की कीमतें 10,000-11,000 रुपये प्रति टन तक कम हुई हैं। एसईए ने साथ ही कहा कि प्रतिबंध का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है।

चावल मिलों को नुकसान : निर्यात प्रतिबंध से चावल की भूसी निकालने वाली इकाइयों और चावल मिलों को नुकसान पहुंचा है, साथ ही किसानों की आय भी प्रभावित हुई है। इस प्रतिबंध के परिणामस्वरूप भारत को डीडीजीएस और मक्का जैसे विकल्पों के कारण निर्यात बाजार से हाथ धोना पड़ा है। प्रतिबंध हटाने से निर्यात पुनर्जीवित होगा, किसानों की आय में सुधार होगा, ग्रामीण स्तर पर रोजगार सृजन होगा, क्षमता उपयोग में वृद्धि होगी और भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता मजबूत होगी। तेल रहित चावल की भूसी के निर्यात की अनुमति देना सभी हितधारकों के लिए फायदेमंद होगा।

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