

मुंबईः गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और छोटी राशि के कर्ज देने वाली इकाइयों के लिए बैंक वित्त को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने जोखिम भारांश कम कर दिया। इस कदम से बैंकों के पास अधिक धन उपलब्ध होगा और वे अधिक कर्ज दे सकेंगे। कम जोखिम भारांश का मतलब है कि बैंकों को उपभोक्ता ऋण के लिए सुरक्षा के रूप में कम धनराशि अलग रखने की आवश्यकता होगी और उनकी उधार देने की क्षमता में वृद्धि होगी। केंद्रीय बैंक ने नवंबर, 2023 में जोखिम भार बढ़ाकर ऋण देने के मानदंडों को कड़ा किया था।
उसके बाद एनबीएफसी और छोटी राशि के कर्ज देने वाले (माइक्रोफाइनेंस) संस्थानों दोनों के कर्ज देने की गति धीमी हुई है। उन सभी मामलों में जहां एनबीएफसी की बाह्य रेटिंग के अनुसार मौजूदा जोखिम भार 100 प्रतिशत से कम था, एनबीएफसी में वाणिज्यिक बैंकों के कर्ज पर जोखिम भार 25 प्रतिशत (दिए गए बाहरी रेटिंग से जुड़े जोखिम भार से अधिक) बढ़ा दिया गया था।
कब की थी वृद्धिः नवंबर 2023 में, व्यक्तिगत ऋण सहित उपभोक्ता कर्ज पर जोखिम भारांश भी 125 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया था। इसमें आवास, शिक्षा, वाहन और सोने और सोने के आभूषणों पर लिये जाने वाले कर्ज को अलग रखा गया था। केंद्रीय बैंक ने स्पष्ट किया कि सूक्ष्म वित्त ऋण जो उपभोक्ता कर्ज की प्रकृति के नहीं हैं और कुछ मानदंडों को पूरा करते हैं, उन्हें नियामकीय खुदरा पोर्टफोलियो (आरआरपी) के तहत वर्गीकृत किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए शर्त है कि बैंक योग्यता मानदंडों को सुनिश्चित करने के लिए उचित नीतियां और मानक संचालन प्रक्रियाएं लागू करें। इसके साथ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) और स्थानीय क्षेत्र बैंकों (एलएबी) द्वारा दिए गए सूक्ष्म वित्त ऋण पर 100 प्रतिशत का जोखिम भारांश लगेगा।