बिहार SIR पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश, Aadhaar को 12वां दस्तावेज माना जाएगा

आधार मतदाता सूची के लिए वैध पहचान पत्र, पर नागरिकता के लिए नहीं
सुप्रीम कोर्ट
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नयी दिल्ली/ पटना : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को निर्देश दिया कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) में मतदाताओं के पहचान प्रमाण के रूप में ‘आधार’ कार्ड को ‘अवश्य’ शामिल किया जाए तथा निर्वाचन आयोग को 9 सितंबर तक इस निर्देश को लागू करने को कहा।

एसआईआर प्रक्रिया में 11 निर्धारित दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड को भी जोड़ते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि ‘आधार’ नागरिकता का प्रमाण नहीं होगा।

बहुचर्चित मुद्दे पर अपने आदेश में न्यायालय ने कहा कि निर्वाचन आयोग मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिए मतदाता द्वारा पेश किये गए आधार नंबर की वास्तविकता का पता लगा सकता है। शीर्ष अदालत ने मतदाताओं से आधार कार्ड स्वीकार नहीं करने के लिए निर्वाचन अधिकारियों को जारी किये गए कारण बताओ नोटिस पर भी आयोग से स्पष्टीकरण मांगा।

न्यायालय ने कहा, हम निर्वाचन आयोग और उसके प्राधिकारियों को निर्देश देते हैं कि वे बिहार की संशोधित मतदाता सूची में नाम शामिल करने या हटाने के लिए पहचान के प्रमाण के रूप में आधार कार्ड को स्वीकार करें। इस उद्देश्य के लिए प्राधिकारियों द्वारा आधार कार्ड को 12वें दस्तावेज के रूप में माना जाएगा।

पीठ ने कहा, हालांकि, यह स्पष्ट किया जाता है कि प्राधिकारी अन्य सूचीबद्ध दस्तावेजों की तरह आधार कार्ड की प्रामाणिकता और वास्तविकता को सत्यापित करने के लिए अतिरिक्त प्रमाण/दस्तावेज मांगेंगे।

पीठ ने कहा कि 2016 के आधार अधिनियम के तहत आधार कार्ड को दी गई वैधानिक स्थिति के अनुसार, यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है और इसलिए इसे (नागरिकता के प्रमाण के रूप में) स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23(4) पर विचार करते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा कि आधार कार्ड व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के लिए सूचीबद्ध दस्तावेजों में से एक है।

प्रावधान में कहा गया है, निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से यह अपेक्षा कर सकता है कि ऐसा व्यक्ति आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 के प्रावधानों के अनुसार भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा जारी किया गया आधार नंबर प्रस्तुत करे।

बिहार में वर्तमान में ऐसे 11 निर्धारित दस्तावेज हैं जिन्हें मतदाताओं को मतदाता सूची में शामिल होने के लिए अपने प्रपत्रों के साथ जमा करना होगा। न्यायालय द्वारा सोमवार को जारी किया गया आदेश ‘आधार’ को पहचान के वैध प्रमाण के रूप में पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र सहित अन्य निर्धारित दस्तावेजों के समान बनाता है।

आयोग की 24 जून की अधिसूचना के अनुसार, अंतिम रूप से दी गई मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित की जाएगी।

न्यायालय ने कहा कि कोई भी नहीं चाहता कि निर्वाचन आयोग अवैध प्रवासियों को मतदाता सूची में शामिल करे। पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट होना चाहिए कि केवल वास्तविक नागरिकों को ही मतदान करने की अनुमति हो और जाली दस्तावेजों के आधार पर वास्तविक होने का दावा करने वालों को मतदाता सूची से बाहर रखा जाए।

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और शोएब आलम ने आरोप लगाया कि शीर्ष अदालत के तीन आदेशों के बावजूद, जिसमें निर्वाचन आयोग को आधार कार्ड को पहचान के वैध प्रमाण के रूप में स्वीकार करने को कहा गया था, आयोग इसे स्वीकार नहीं कर रहा है और यहां तक ​​कि उन निर्वाचन अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस भी जारी कर रहा है, जो इसे मतदाताओं से स्वीकार कर रहे थे।

आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने दलील दी कि मसौदा मतदाता सूची में शामिल 7.24 करोड़ मतदाताओं में से 99.6 प्रतिशत ने दस्तावेज जमा कर दिए हैं और याचिकाकर्ताओं द्वारा ‘आधार’ को 12वें दस्तावेज के रूप में शामिल करने के अनुरोध से कोई व्यावहारिक उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

पीठ ने आधार अधिनियम 2016 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों का हवाला दिया और कहा कि यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन इसे पहचान के प्रमाण के रूप में माना जा सकता है। न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि बिहार में एसआईआर के लिए सूचीबद्ध 11 निर्धारित दस्तावेजों में से केवल पासपोर्ट और जन्म प्रमाण पत्र ही ठोस प्रमाण हैं।

उन्होंने कहा, आधार जनप्रतिनिधित्व अधिनियम से अलग नहीं है और अधिनियम की धारा 23 (4) आधार को पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार करती है। न्यायमूर्ति बागची ने कहा, कानून और न्यायिक निर्णय दोनों कहते हैं कि आधार नागरिकता का वैध प्रमाण नहीं है। लेकिन यह वास्तव में पहचान का प्रमाण है और कानून के अनुसार इसका कुछ महत्व है। आपको इसकी पड़ताल करनी चाहिए।

सुनवाई के दौरान पीठ ने सिब्बल से कहा कि केवल आधार कार्ड नागरिकता का वैध प्रमाण नहीं हो सकता और इसके साथ अन्य दस्तावेज भी होने चाहिए। सिब्बल ने कहा कि वह नहीं चाहते कि आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाए, बल्कि मतदाताओं के लिए पहचान के वैध प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाए, क्योंकि बूथ स्तर के अधिकारी (बीएलओ) किसी व्यक्ति की नागरिकता का निर्धारण नहीं कर सकते।

हालांकि, द्विवेदी ने कहा कि याचिकाकर्ता असल में चाहते हैं कि आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में माना जाए और उन्होंने इसका ‘दुरुपयोग’ होने के प्रति आगाह किया। द्विवेदी ने कहा कि मतदाता सूची के लिए, निर्वाचन आयोग के पास नागरिकता की जांच करने का अधिकार है। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने लगभग 0.3 प्रतिशत अवैध प्रवासियों का पता लगाया है।

असम और पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों में एसआईआर की मांग करने वाले अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि अगर आधार की अनुमति दी गई, तो पूरी पुनरीक्षण प्रक्रिया निरर्थक हो जाएगी क्योंकि रोहिंग्याओं सहित अवैध प्रवासी मतदाता बन जाएंगे। पीठ ने एक बार फिर कहा कि भारत में हर दस्तावेज जाली हो सकता है, लेकिन अधिकारियों द्वारा उसकी प्रामाणिकता की पुष्टि की जा सकती है।

शीर्ष अदालत ने सुनवाई 15 सितंबर के लिए स्थगित कर दी और निर्वाचन आयोग से आदेश को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करने को कहा। बिहार में एसआईआर, जो 2003 के बाद पहली बार की जा रही' ने एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है।

विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य लोगों को उनके मताधिकार से वंचित करना है। वहीं निर्वाचन आयोग का कहना है कि एसआईआर का उद्देश्य मृत, डुप्लीकेट मतदाता पहचान पत्र रखने वाले या अवैध अप्रवासियों के नाम हटाकर मतदाता सूची को साफ-सुथरा करना है।

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