प्रचार यात्राएं भी नहीं बचा सकीं महागठबंधन की डूबती नाव

राहुल का चुनाव अभियान सघन नहीं था; उनका प्रचार ‘आना-जाना’ वाला लगा ओर बूथ स्तर पर कांग्रेस की संगठनात्मक कमजोरी के कारण यात्रा का संदेश जमीनी स्तर तक पहुंच नहीं पाया।
प्रचार यात्राएं भी नहीं बचा सकीं महागठबंधन की डूबती नाव
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महागठबंधन कई मोर्चों पर पिछड़ा

प्रचार और रणनीति दोनों स्तरों पर महागठबंधन कई मोर्चों पर पिछड़ता दिखा। जबकि राहुल गांधी की ‘वोट चोरी यात्रा’ और तेजस्वी यादव की ‘अधिकार यात्रा’ ने शुरुआती उत्साह जरूर पैदा किया, लेकिन वे उस राजनीतिक लहर को बनाने में नाकाम रहीं जिसकी उम्मीद की जा रही थी।

कांग्रेस ने चुनाव में अपनी जमीन दुबारा हासिल करने के लिए राहुल गांधी की ‘वोट चोरी यात्रा’ को प्रचार का मुख्य हथियार बनाया। इस यात्रा का उद्देश्य यह सिद्ध करना था कि पिछली बार उनके वोटों की ‘चोरी’ हुई और इस बार जनता को ‘सतर्क’ रहना चाहिए। लेकिन इस यात्रा की तीन प्रमुख कमजोरियां सामने आयीं। यात्रा जनता से अधिक मीडिया केन्द्रित दिखी।

संदेश जमीनी स्तर तक नहीं पहुंचा

राहुल का चुनाव अभियान सघन नहीं था; उनका प्रचार ‘आना-जाना’ वाला लगा ओर बूथ स्तर पर कांग्रेस की संगठनात्मक कमजोरी के कारण यात्रा का संदेश जमीनी स्तर तक पहुंच नहीं पाया।राहुल गांधी की यात्राओं और सभाओं ने राजनीतिक माहौल जरूर बनाया, लेकिन वोटों में उसे परिवर्तित करने की क्षमता कांग्रेस दिखा नहीं सकी।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का नतीजा महागठबंधन के लिए गहरी निराशा लेकर आया है। लोकसभा चुनाव में 10 सीटें जीतकर उत्साहित हुआ विपक्ष विधानसभा में वह प्रदर्शन दोहरा नहीं सका। सामान्य आंकलन के अनुसार, लोकसभा की 10 सीटों के आधार पर महागठबंधन को लगभग 60 विधानसभा सीटें मिलनी चाहिए थीं, परंतु वास्तविकता इससे बहुत दूर रही।

राहुल गांधी की ‘वोट चोरी यात्रा’ हो या तेजस्वी यादव की ‘अधिकार यात्रा’, महिलाओं के लिए बड़े वादे हों या सामाजिक न्याय का सुर- इन सबके बावजूद महागठबंधन निर्णायक बढ़त पाने में नाकाम रहा। कांग्रेस और RJD का अपेक्षित प्रदर्शन न कर पाना गठबंधन की राजनीतिक रणनीति पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

सीट बंटवारे में खींचतान

सीट बंटवारे के दौरान रही खींचतान ने भी गठबंधन को नुकसान पहुंचाया। टिकट वितरण इस तरह किया गया, मानो जीत पहले से तय हो। RJD, कांग्रेस और अन्य सहयोगी दल कई सीटों पर इस आत्मविश्वास में रहे कि टिकट देना ही जीत की गारंटी है। परिणामों ने इस आत्मविश्वास को पूरी तरह झुठला दिया।

इसके विपरीत NDA में सीट बंटवारा सहजता से संपन्न हुआ। BJP, JDU और सहयोगी दल शुरू से लेकर अंतिम दौर तक संगठित, आक्रामक और रणनीतिक रूप से सक्रिय रहे। BJP का बूथ स्तर तक फैला प्रचार और प्रबंधित सोशल मीडिया कैंपेन महागठबंधन की तुलना में कई गुना प्रभावी साबित हुआ।

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