
मुजफ्फरपुर (बिहार) : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ‘एक सभ्यतागत पुनर्जागरण’ और ‘भारत को एक अकादमिक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में राष्ट्र-निर्माण से जुड़ा मिशन’ करार दिया। उत्तर बिहार के शहर मुजफ्फरपुर में एक समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उन्होंने कहा कि 2020 में बनाई गई नीति ‘कुशल पेशेवरों, संतुष्ट नागरिकों, नौकरी का सृजन करने वालों को तैयार करने और इस राष्ट्र में हम जो चाहते हैं, उसे सही रूप से प्रतिबिंबित करने’ का प्रयास करती है।
उन्होंने मुजफ्फरपुर स्थित एल एन मिश्रा कॉलेज ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट की भी सराहना की, जिसने ‘भारतीय ज्ञान परंपरा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का परिप्रेक्ष्य’ नामक विषय चुना। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि वैदिक सिद्धांत के अनुसार ज्ञान मुक्ति का मार्ग है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत में शिक्षा हमेशा ‘मूल्य-आधारित’ रही है, यही कारण है कि इसका कभी ‘व्यावसायीकरण’ नहीं हुआ या इसे वस्तु या उत्पाद के रूप में पेश नहीं किया गया।
उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि दुनिया भारत की ओर देख रही है क्योंकि इसकी युवा जनसांख्यिकी में क्षमता निहित है। धनखड़ ने कहा, भारत में औसत आयु 28 वर्ष है। यही हमारी ताकत है। अमेरिका और चीन हमसे कम से कम 10 साल पीछे हैं। धनखड़ ने धरती की प्राचीन विरासत को नमन किया और बिहार को ‘भारत की दार्शनिक नींव की जन्मस्थली’ बताया।
उन्होंने कहा, यह वह भूमि है जहां भगवान बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। यह जैन धर्म की भूमि भी है, जहां भगवान महावीर को आध्यात्मिक जागृति मिली थी। धनखड़ ने नालंदा और विक्रमशिला जैसे प्राचीन शिक्षा केंद्रों के बारे में बात की और कहा, ये हमेशा हमारे लिए प्रकाश पुंज बने रहेंगे। उपराष्ट्रपति ने स्वतंत्रता आंदोलन में राज्य के योगदान को भी याद किया और चंपारण सत्याग्रह पर प्रकाश डाला, जिसने न केवल औपनिवेशिक अन्याय को चुनौती दी, बल्कि शासन का एक नया व्याकरण प्रस्तुत किया, जो सत्य, गरिमा और निडर सेवा पर आधारित था।