जज्बे को सलाम : कैंसर में एक हाथ गंवाने के बाद भी 10वीं की … | Sanmarg

जज्बे को सलाम : कैंसर में एक हाथ गंवाने के बाद भी 10वीं की …

नदिया : शांतिपुर के हरिपुर के नरपतिपाड़ा निवासी शुभजीत विश्वास (16) भी इस साल लाखों माध्यमिक परीक्षार्थियों की तरह ही परीक्षा दे रहा है मगर इसके बावजूद वह उन लाखों परिक्षार्थियों से थोड़ा अलग है। अलग इसलिए है क्योंकि उसने महज दो महीनों में ना केवल परीक्षा की तैयारी की बल्कि कैंसर के चलते अपना दाहिना हाथ गंवाने के बाद अपने बाएं हाथ से लिखना भी सीखा। शुभजीत विश्वास की सीट नृसिंहपुर हाईस्कूल में पड़ी है जहां उसके इस अदम्य साहस को देख सभी उसकी सराहना कर रहे हैं। स्कूल के प्रिंसिपल सौमित्र विद्यार्थ ने कहा, हमने उसके लिए सभी चिकित्सा सहायता तैयार रखी है लेकिन उसने पेपर के लिए कोई अतिरिक्त समय नहीं मांगा। उसने अन्य व्यक्ति से लिखवाने का विकल्प भी नहीं चुना है। उसने बताया है कि कुछ साल पहले उसके दाहिने बांह में एक ट्यूमर हुआ था और बाद में कैंसर होने का पता चला।
बंगलुरु में करवाया इलाज
कोलकाता के विभन्न अस्पताल में चिकित्सा करवाने के बाद भी जब निदान नहीं मिला तो उसे बंगलुरु में इलाज के लिए भेजा गया। वहां परिवार को दो साल तक रहना पड़ा और उन्होंने शुभजीत की चिकित्सा करवाने की को​शिश की। चिकित्सा से उसकी जान तो बच गयी लेकिन उसके दाहिने हाथ को बचाया नहीं जा सका। शुभजीत का कहना है ​कि पिछले साल दिसंबर में कोहनी से उसका दाहिना हाथ काट दिया गया था, तब से ही अपने बाएं हाथ से लिखने का अभ्यास शुरू कर दिया था। यह बहुत कठिन था।
दिन भर रोता था लेकिन,
मुझे बहुत रोना भी आया लेकिन धीरे-धीरे, दैनिक अभ्यास के साथ गति में सुधार हुआ और अब मैं सीधे लिखने में सक्षम हूं। बेटे के इलाज के खर्च से परिवार की आर्थिक स्थिति पर असर पड़ा है। उसके पिता इंद्रजीत विश्वास पहले एक हथकरघा इकाई में बुनकर के रूप में काम करते थे लेकिन अब कोलकाता में निर्माण श्रमिक के रूप में काम करते हैं। मां भी छोटा-मोटा काम करती है जिससे उनके परिवार का गुजारा चलता है। शुभजीत के चाचा अरिजीत विश्वास ने कहा कि उसके इलाज के दौरान हुए खर्चों के कारण उसके माता-पिता कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं।

 

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