सिलीगुड़ी : वर्ष 2024 के चुनाव में दार्जिलिंग में विकास या फिर अलग गोरखालैंड की मांग का मुद्दा इस बार छाया रहेगा। इसके लिए सभी दलों ने अपना-अपना प्रत्याशी मैदान में उतार दिया है। कांग्रेस के बिनय तमांग, भाजपा ने राजू बिस्ता, तृणमूल के गोपाल लामा और भाजपा के कर्सियांग विधायक बिष्णु प्रसाद शर्मा निर्दल प्रत्याशी के रूप में मैदान में है। सबसे पहले नामांकन करने वाले तृणमूल कांग्रेस के गोपाल लामा ने नामांकन कर सबको चौंका दिया। हालांकि नामांकन के बाद बीजीपीएम व जीटीए के प्रमुख अनिक थापा ने साफ कर दिया कि पहाड़ में अलग राज्य का कोई मुद्दा नहीं है। पहाड़ की जनता विकास और शांति चाहती है हम इसी मुद्दे को लेकर इस बार चुनाव जीतेंगे। वहीं समतल अध्यक्ष पापिया घोष ने भी अपने बयान में अगल राज्य का जिक्र तक नहीं किया सिर्फ ममता बनर्जी के विकास मॉडल को दोहराया है। इसलिए इस लोकसभा चुनाव में विश्वधरोहर डीएचआर की ट्वॉय ट्रेन अलग राज्य नहीं विकास की पटरी पर दौड़ रही है।
2011 के विधानसभा चुनाव में गोरखाओं ने दिखाया था दम
पहली बार राज्य के विधानसभा चुनाव 2011 में भले ही ममता बनर्जी ने सत्ता पर काबिज हो गई, लेकिन 2011 के चुनाव में जीजेएम उम्मीदवारों ने तीन दार्जिलिंग पहाड़ी विधानसभा सीटें जीतीं, जिससे साबित हुआ कि दार्जिलिंग में गोरखालैंड की मांग अभी भी मजबूत थी। इसमें जीजेएम उम्मीदवार त्रिलोक दीवान ने दार्जिलिंग निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की कलिम्पोंग निर्वाचन क्षेत्र से हरका बहादुर छेत्री और कर्सियांग निर्वाचन क्षेत्र से रोहित शर्मा ने जीत हासिल की। जबकि डुवार्स में जीजेएम द्वारा समर्थित एक स्वतंत्र उम्मीदवार विल्सन चंप्रामारी भी कालचीनी निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल कर अगल राज्य के हौसले काे हवा दी थी।
दार्जिलिंग सीट पर वोटरों का तानाबाना
दार्जिलिंग लोकसभा सीट के 7 विधानसभा क्षेत्राें में कुल 1753699 मतदाता हैं। इनमें पुरुष 878148, महिला 875509 और थर्ड जेंडर के 42 मतदाता हैं। इस सीट पर गोरखाओं के वोट का दबदबा है और करीब 50 प्रतिशत से अधिक गोरखा वोटर हैं, जिसमें दार्जिलिंग हिल्स, कर्सियांग, कालिंगपोंग, मिरक और सिलीगुड़ी भी शामिल हैं। बावजूद इसके अलग राज्य की मांग के आंदोलन जान गवांने वाले गोरखाओं की प्रमुख मांगे गोरखालैंड को भूलकर लोग विकास की पटरी पर दौड़ रहे हैं।
एक नजर अलग गोरखालैंड की मांग पर
अलग राज्य की मांग को लेकर गोरखा नेशनल लिबरेशन मोर्चा द्वारा 1986 में एक हिंसक आंदोलन की शुरुआत हुई। हालांकि गोरखा वर्ष 1907 से ही पश्चिम बंगाल से अलग होने की मांग भाषा के आधार पर कर रहे हैं क्योंकि वे सांस्कृतिक, जातीय रूप से पश्चिम बंगाल से अलग हैं। इस मांग को लेकर कई हिंसक आंदोलन ने विराट रूप ले लिया, जिसके कारण 1,200 से अधिक लोगों की मौत हो गई। 2007 में, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) नामक एक नई पार्टी ने एक बार फिर अलग गोरखालैंड राज्य की मांग उठाई। जीजेएम के मुखिया बिमल गुरुंग ने अगल राज्य के लिए भाजपा से हाथ मिलाया और 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जसवन्त सिंह प्रत्याशी बनाया और अलग राज्य के मुद्दे पर चुनाव जीतकर संसद पहुंच गए।