

प्रसेनजीत, सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : झाड़ग्राम की उस दोपहर में कुछ पल ऐसे थे, जो किसी सरकारी कार्यक्रम की औपचारिकता से कहीं आगे निकल गए। अनाथ आश्रम के बच्चों के लिए आयोजित खेलकूद और पिकनिक के बीच एक कोने में चुपचाप बैठा था आठ साल का अमिय। हाथ में गहरी चोट—जिसके कारण वह ठीक से खाना नहीं खा पा रहा था। चम्मच भी उसके लिए बेकार साबित हो रहा था। भूख थी, लेकिन असहाय निगाहें इधर-उधर भटक रही थीं। ठीक तभी, पास ही खड़ी थीं राज्य की वन मंत्री बीरबाहा हांसदा। बच्चे की आंखों की उस खामोश पुकार ने उनका ध्यान खींच लिया। बिना किसी प्रोटोकॉल, बिना कैमरे की परवाह किए, मंत्री खुद आगे बढ़ीं। अपने हाथों से प्यार से भात मसलकर उन्होंने अमिय को खिलाना शुरू कर दिया।
यह दृश्य देखकर वहां मौजूद लोग स्तब्ध रह गए। सत्ता, पद और दूरी—सब कुछ जैसे उस पल पिघल गया। सिर्फ एक मां-सी ममता और एक भूखे बच्चे की तृप्ति बाकी रह गई। कोविड काल में ‘मनेर ठिकाना’ नामक संगठन की स्थापना करने वाली बीरबाहा पहले से ही सेवा कार्यों से जुड़ी रही हैं—गरीब बच्चों की पढ़ाई, बेसहारा लोगों की मदद, अनाथ बच्चों की देखभाल। लेकिन उस दिन झाड़ग्राम में उन्होंने जो किया, वह किसी परियोजना या योजना का हिस्सा नहीं था—वह सिर्फ इंसानियत थी। मंत्री ने बाद में सादगी से कहा, “बच्चा भूखा था, खा नहीं पा रहा था। बस मदद कर दी। इतनी मानवता तो हम सब में होनी चाहिए।”
मंत्री के हाथों खाना खाकर मुस्कुराता अमिय उस दिन का सबसे सच्चा प्रमाण था कि राजनीति से परे भी रिश्ते होते हैं और सत्ता से ऊपर भी संवेदना।