वर्षों से बंद दो खदानें चिनाकुड़ी व दुबेस्सरी सौंपी गयी निजी कंपनी को

आय का 8 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा ईसीएल को
वर्षों से बंद दो खदानें चिनाकुड़ी व दुबेस्सरी सौंपी गयी निजी कंपनी को
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सांकतोड़िया : ईसीएल में बंद भूमिगत खदानों से उत्पादन और राजस्व उत्पन्न करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में वर्षों से बंद पड़ी भूमिगत खदान चिनाकुड़ी माइन संख्या एक और तीन तथा दुबेस्सरी कोलियरी को राजस्व साझाकरण के आधार पर मेसर्स इनोवेटिव माइनिंग प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड (एमडीओ) को सौंप दिया गया है। ईसीएल की ओर से सोदपुर एरिया महाप्रबंधक अभिजीत गंगोपाध्याय और एमडीओ की ओर से एसके मुखोपाध्याय मेसर्स इनोवेटिव माइनिंग प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता ने हस्तांतरण दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए हैं। मौके पर ईसीएल के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक सतीश झा, निदेशक (तकनीकी/संचालन) नीलाद्रि राय, निदेशक (तकनीकी/पी एंड पी) गिरीश गोपीनाथ नायर, सोदपुर एरिया महाप्रबंधक अभिजीत गंगोपाध्याय और मेसर्स इनोवेटिव माइनिंग प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के अधिकारी उपस्थिति थे। मालूम हो कि कोयला मंत्रालय ने वर्षों से बंद पड़ी पांच कोयला खदानों को रेवेन्यू शेयरिंग मोड में देने का फैसला किया था जिसमें से चिनाकुड़ी खदान भी शामिल है। इसे रेवेन्यू शेयरिंग मोड में दिया गया है। अब इस खदान को निजी कंपनी द्वारा संचालित किया जाएगा लेकिन खदान से होने वाली आय का 8 प्रतिशत हिस्सा ईसीएल को दिया जाएगा।

चिनाकुड़ी खदान की स्थिति

जानकारों का कहना है कि चिनाकुड़ी खदान संख्या एक लगभग 17 वर्षों से बंद है जबकि चिनाकुड़ी खदान संख्या 3 तथा दुबेसरी कोलियरी पिछले महीने बंद कर दी गई हैं। चिनाकुड़ी माइन संख्या एक में अभी भी 72 मिलियन टन चिनाकुड़ी माइन संख्या तीन में 20 मिलियन टन तथा दुबेस्सरी कोलियरी में 2.6 मिलियन टन कोयला रिजर्व है।

बंद खदानों को पुनः आरंभ करने का प्रयास

ईसीएल प्रबंधन ने बंद पड़ी खदानों को राजस्व साझा के आधार पर पुनः आरंभ करने का प्रयास किया है। ईसीएल का लक्ष्य राजस्व साझाकरण के माध्यम से बंद खदानों को फिर से चालू करना, कोयला निष्कर्षण बढ़ाना, तकनीकी उन्नयन करना और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। हाल ही में ईसीएल के निदेशक ने चिनाकुड़ी खदान संख्या 1 का निरीक्षण किया था और बंद खदान के पुनर्जीवन के लिए एमडीओ मोड का इस्तेमाल किया गया है जो राजस्व साझाकरण से संबंधित है। यह कोल इंडिया लिमिटेड की पहली खदान है जिसे एमडीओ (राजस्व साझाकरण) को सौंपा गया है।

रेवेन्यू शेयरिंग मोड क्या है

रेवेन्यू शेयरिंग एक बिजनेस मॉडल है जिसमें विभिन्न भागीदार जैसे कि कंपनियां, पार्टनर या अन्य पक्ष, किसी उत्पाद, सेवा या साझेदारी से उत्पन्न होने वाले कुल राजस्व को एक निश्चित तरीके से साझा करते हैं। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें एक पक्ष (जैसे, एक ऐप डेवलपर) अपने उत्पादों या सेवाओं के वितरण या प्रचार में मदद करने वाले अन्य पक्षों (जैसे कि ऐप स्टोर या विज्ञापन प्लेटफॉर्म) के साथ राजस्व साझा करने के लिए सहमत होता है। यह मॉडल लाभ और हानि के जोखिमों को भी साझा करता है। वहीं यदि व्यवसाय सफल होता है तो सभी भागीदार अपने समझौते के अनुसार राजस्व का एक हिस्सा प्राप्त करते हैं। अब अगर व्यवसाय सफल नहीं होता है, तो सभी भागीदार राजस्व की कमी के लिए जिम्मेदार होते हैं।

अब तक डीजीएमएस के दाव-पेच में फंसा था

जानकारों का कहना है कि हैंडओवर निजी कंपनी को दो महीने पहले कर दिया जाता परंतु डीजीएमएस और ईसीएल प्रबंधन के बीच मालिकाना हक को लेकर खींचातान चल रहा था जिस कारण डीजीएमएस ने खनन करने की अनुमति नहीं दिया था। डीजीएमएस अधिकारी का कहना था कि ईसीएल प्रबंधन ने भले ही निजी कंपनी को चलाने के लिए दे दिया है परन्तु खदान में किसी तरह की दुर्घटना घट जाती है तो उस समय डीजीएमएस किसको पकड़ेगा, ईसीएल को या निजी कंपनी को ? इस पर डीजीएमएस का कहना था कि ऑनर ईसीएल को मानते हैं। अंततः ईसीएल प्रबंधन को मजबूर होकर निजी कंपनी के हाथों सौंपने के बावजूद अपने अधिकारी प्रबंधक एवं अभिकर्ता को वहां पर रखना पड़ा है, तब जाकर डीजीएमएस ने एप्रूवल दिया है। उसके बाद ही ईसीएल प्रबंधन ने निजी कंपनी को सौंपा।

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