कोयले का पहाड़ आर्थिक बोझ नहीं, बन चुका है खतरे की घंटी

कोयले का पहाड़ आर्थिक बोझ नहीं, बन चुका है खतरे की घंटी
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सांकतोड़िया : ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ईसीएल) में कोयले का स्टॉक लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे अब कोयले में आग लगने का गंभीर खतरा मंडराने लगा है। ईसीएल में अभी तक साढ़े सात मिलियन टन कोयले का स्टॉक है। यही स्थिति बनी रही तो दस मिलियन टन से अधिक स्टॉक बढ़ सकता है। खदान परिसर, रेलवे साइडिंग और स्टॉक यार्ड में महीनों से जमा कोयला न सिर्फ जगह घेर रहा है, बल्कि स्वतः दहन (सेल्फ हीटिंग) की आशंका को भी बढ़ा रहा है। सूत्रों के अनुसार, कमजोर मांग, ई-ऑक्शन में गिरावट और कोयले की उठाव में कमी के कारण स्टॉक तेजी से बढ़ा है। कई क्षेत्रों में तय सीमा से अधिक कोयला जमा हो चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि लंबे समय तक खुले में पड़ा कोयला गर्मी और नमी के संपर्क में आकर आग पकड़ सकता है, जिससे बड़े पैमाने पर नुकसान की आशंका रहती है। कोयले में आग लगने की स्थिति में न सिर्फ करोड़ों रुपये के संसाधन स्वाहा होंगे, बल्कि कर्मचारियों और आसपास की आबादी की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है। आरोप है कि प्रबंधन स्तर पर कोयला डिस्पैच और बिक्री को लेकर ठोस रणनीति का अभाव है। वहीं अग्नि सुरक्षा के इंतजाम, नियमित तापमान निगरानी, पानी के छिड़काव और फायर लाइन जैसी व्यवस्थाएं कई जगह कागजों तक सीमित बताई जा रही हैं। इस स्थिति पर कर्मचारी संगठनों ने गहरी चिंता जताते हुए मांग की है कि तत्काल स्टॉक प्रबंधन की समीक्षा की जाए, उत्पादन और डिस्पैच में संतुलन बनाया जाए और अग्नि सुरक्षा उपायों को सख्ती से लागू किया जाए। इस पूरे मामले पर ईसीएल प्रबंधन की ओर से अब तक कोई स्पष्ट बयान सामने नहीं आया है। वहीं, स्थानीय स्तर पर मांग उठ रही है कि कोयला डिपो की क्षमता के अनुसार ही उत्पादन और स्टॉक रखा जाए तथा आग से बचाव के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाए जाएं।

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