ईसीएल ने किया दावा, 'रानीगंज को खाली करवाना ही एक मात्र विकल्प'

ईसीएल ने रानीगंज बचाओ मंच को पत्र देकर सुरक्षा का दिया हवाला
ईसीएल ने किया दावा, 'रानीगंज को खाली करवाना ही एक मात्र विकल्प'
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रानीगंज : रानीगंज में घरों के पुनर्वास और नए निर्माण की अनुमति को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। जहां एक तरफ भाजपा के वरिष्ठ नेता जितेंद्र तिवारी ने रानीगंज को 'ध्वस्त' करने की साजिश का आरोप लगाया है, वहीं दूसरी तरफ ईसीएल ने रानीगंज बचाओ मंच को पत्र लिखकर सुरक्षा कारणों से घरों को खाली कराने और नए निर्माण पर रोक को सही ठहराया है।

जितेंद्र तिवारी का आरोप- 'रानीगंज को बर्बाद करने की साजिश'

आसनसोल के पूर्व मेयर जितेंद्र तिवारी ने कहा कि 2021 से रानीगंज में नए भवन का नक्शा पास नहीं हो रहा हैं और 300 मीटर के दायरे में निर्माण की अनुमति नहीं दी जा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि 'धंसान प्रभावित' और 'अस्थिर' बताकर रानीगंज के विकास को रोका जा रहा है। तिवारी ने इसे एक सोची-समझी साजिश करार देते हुए कहा कि जनता सब समझ रही है। भाजपा नेता जितेंद्र तिवारी ने राज्य सरकार से एक विशेष टीम बनाने और वैज्ञानिक तरीके से सर्वे कराने की मांग की, ताकि वास्तविक स्थिति का पता लगाया जा सके। उन्होंने कहा कि जहां धंसान का खतरा हो, वहां निर्माण की अनुमति न दी जाए, लेकिन पूरे शहर में रोक लगाना 'आश्चर्यजनक' है। तिवारी ने चेतावनी दी कि भाजपा इस मुद्दे पर बड़ा आंदोलन करेगी और 2026 में सरकार बनने पर एक एक्सपर्ट कमेटी बनाकर रानीगंज को बचाने की व्यवस्था करेगी।

ईसीएल का जवाब- 'सुरक्षा सर्वोपरि, खाली कराना ही एकमात्र विकल्प'

रानीगंज में घरों को खाली न कराने और नए निर्माण की अनुमति देने की मांग पर ईसीएल ने रानीगंज बचाओ मंच को एक पत्र लिखकर अपना पक्ष स्पष्ट किया है। ईसीएल के सीएमडी ने यह पत्र रानीगंज बचाओ मंच के संयोजक को भेजा है, जिसमें उन्होंने इलाके की सुरक्षा से जुड़े गंभीर मुद्दों का हवाला दिया है। पत्र में ईसीएल ने कहा है कि राष्ट्रीयकरण से पहले लगभग 200 साल तक की गई अवैज्ञानिक खनन प्रथाओं के कारण रानीगंज में भूस्खलन (सब्सिडेंस) और आग लगने की समस्या उत्पन्न हुई है। उन्होंने कहा कि पुराने और जलमग्न खदानों की वजह से कई इलाके रहने के लिए असुरक्षित हो गए हैं। इस खतरे को देखते हुए, पश्चिम बंगाल सरकार ने पहले ही इन असुरक्षित क्षेत्रों में किसी भी नए निर्माण पर रोक लगा दी थी। ईसीएल ने यह भी बताया है कि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा गठित विभिन्न समितियों ने भी इन समस्याओं पर रिपोर्ट दी है और रहने वालों को वहां से हटाने को ही एकमात्र विकल्प बताया है, क्योंकि इन जलमग्न खदानों को स्थिर करने के लिए कोई उपयुक्त तकनीक मौजूद नहीं है। पत्र में 12 अगस्त 2009 को केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित रानीगंज मास्टर प्लान का जिक्र किया गया है, जिसका मुख्य उद्देश्य खनन से जुड़ी आग, भूस्खलन और पुनर्वास की चुनौतियों का समाधान करना है। इस योजना के तहत, लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए चरणबद्ध तरीके से असुरक्षित स्थानों से घरों को खाली कराने का काम चल रहा है। ईसीएल ने साफ शब्दों में कहा है कि मंच की मांग (घरों को खाली न कराने और नए निर्माण की अनुमति देने) को मानना लोगों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ होगा। यदि इन असुरक्षित क्षेत्रों में कोई अप्रिय घटना होती है, तो कानून-व्यवस्था बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा।

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