

सांकतोड़िया : कोल इंडिया लिमिटेड के हजारों सरप्लस (अतिरिक्त) आवासों के लाभदायक उपयोग के उद्देश्य से गठित की गई उच्चस्तरीय कमेटी अब खुद सवालों के घेरे में आ गई है। हैरानी की बात यह है कि कमेटी को बने दो साल से अधिक समय हो चुका है, लेकिन इस दौरान महज तीन बैठकें ही हो पाई हैं, जबकि जमीनी स्तर पर काम लगभग ठप पड़ा है। सूत्रों के अनुसार, कमेटी को नवंबर 2025 तक सरप्लस आवासों का फिजिकल वेरिफिकेशन पूरा करना था, ताकि यह तय किया जा सके कि कौन-से आवास उपयोग योग्य हैं, कहां मरम्मत की जरूरत है और किन आवासों का व्यावसायिक या सामाजिक उपयोग किया जा सकता है। वहीं नवंबर महीना गुजर जाने के बावजूद फिजिकल वेरिफिकेशन का काम अधूरा है और इस पर कोई ठोस प्रगति सामने नहीं आई है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कमेटी में शामिल यूनियन प्रतिनिधियों की ओर से इस देरी को लेकर कोई गंभीर चिंता या दबाव देखने को नहीं मिल रहा। अंदरखाने में चर्चा है कि हर मंच पर सिर्फ प्रबंधन को दोष देना ही यूनियन प्रतिनिधियों की प्राथमिकता बन गई है, जबकि खुद कमेटी की जिम्मेदारी निभाने में वे पूरी तरह असफल साबित हो रहे हैं। जानकारों का कहना है कि अगर कमेटी समय पर सक्रिय होती तो आज कोल इंडिया के हजारों खाली पड़े आवासों का व्यावसायिक उपयोग, कर्मचारियों के लिए ट्रांजिट हाउस, गेस्ट हाउस, हॉस्टल, प्रशिक्षण केंद्र या अन्य राजस्व-सृजन मॉडल के रूप में इस्तेमाल शुरू हो चुका होता। इससे न केवल कंपनी की आय बढ़ती, बल्कि अवैध कब्जों और जर्जर हो रहे क्वार्टरों की समस्या पर भी लगाम लगती। सूत्र यह भी बताते हैं कि कई क्षेत्रों में सरप्लस आवासों पर बाहरी लोगों का कब्जा, तो कहीं असामाजिक तत्वों का अड्डा बन जाना आम बात हो गई है।