

मिदनापुर: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बढ़ रही प्राकृतिक आपदाओं से निपटना लोगों के लिए मुश्किल हो रहा है इसी क्रम में पश्चिम मिदनापुर समेत अन्य इलाकों में लगातार कम दबाव से हो रही बारिश के कारण कृषि कार्य काफी प्रभावित हो रहा है। पहले तो असमय हुई बारिश के कारण जून की शुरुआत से कई बार खेती की गई जमीन और फसलें जलमग्न हो गई हैं, जिससे भारी नुकसान हुआ है। उसके बाद कुछ दिनों के अंतराल में फिर से शुरू हुई बारिश के कारण घाटाल, चंद्रकोना, दासपुर, केशपुर और देबरा के कई इलाकों में खेती की जमीन अभी भी पानी में डूबी हुई है। कई बार बीज की क्यारियां बनाने के बाद भी धान को बचाया नहीं जा सका। किसान इस बात से जूझ रहे हैं कि इसे नए सिरे से कैसे उगाया जाए।
जिला प्रशासन के अनुसार, चालू मानसून में 334 हेक्टेयर फसल, 90 हेक्टेयर अनाज और 57 हेक्टेयर अमन धान के बीज की क्यारियां नष्ट हो गई हैं। जून से 12,8653 लोग जलमग्न हो गए। कुल 327 गांव और तीन नगर पालिकाओं के 17 वार्ड के लोग जलबंदी हो गए अथवा प्रभावित हुए हैं। केशपुर के खड़िका, पारुलिया, पांचाली, दासपुर के रामगढ़, बालीपोटा, समत, घाटल के मनसुका और अजबनगर समेत कई इलाके अभी भी पानी में डूबे हुए हैं। किसानों के अनुसार, पहले तो धान के पौधे(जिसे बांग्ला में चारा कहा जाता है)सड़ गई। उसके बाद फिर से धान के पौधे तैयार किए गए लेकिन वह फिर से पानी में डूब गए। अब किसानों को चिंता हो रही है कि धान की फसल लगाने के लिए धान के पौधे कहां से लाएंेगे। फ़िलहाल, किसानों की सबसे बड़ी चिंता अमन धान की खेती है। किसानों का कहना है कि अगर साल के मुख्य धान की खेती के मौसम में बार-बार क्यारियाँ नष्ट होती रहीं, तो इसका असर सर्दियों की रबी फसलों पर भी पड़ेगा। किसानों का कहना है कि अगर इस बार भी अमन धान की खेती पूरी नहीं हुई, तो आलू, प्याज और टमाटर जैसी रबी फसलों की खेती को भारी नुकसान होगा। लगातार हो रही बारिश ने अनाज के खेतों को भी भारी नुकसान पहुँचाया है। ज़िले के कई अनाज उत्पादक क्षेत्र अब लगभग खाली हो चुके हैं। नतीजतन, बाज़ार में माँग होने के बावजूद आपूर्ति नहीं हो रही है। कीमतों में भारी उछाल के कारण, कई आम परिवार गुज़ारा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ज़िला प्रशासन ने कृषि क्षेत्र को हुए नुकसान के आधार पर मुआवज़ा और सहायता योजना शुरू करने की पहल की है। हालाँकि, किसानों का दावा है, कई बार मदद का आश्वासन मिला है, अगर हमें कुछ नहीं मिला तो हम कैसे गुज़ारा करेंगे। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बढ़ रही ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटना भी मुश्किल है। विशेषज्ञों को भी डर है कि भविष्य में ज़िले में कृषि और प्रभावित होगी। ज़िला कृषि विभाग के एक अधिकारी ने कहा, धान की खेती के मामले में, यह सच है कि बीज बार-बार नष्ट हो जाते हैं लेकिन अभी भी बहुत समय है। उम्मीद है कि किसानों को ज़्यादा समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।