

सालानपुर : सालानपुर एरिया प्रबंध के सामने दिन प्रतिदिन समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। इस एरिया की दो माइंस बंद पड़ी हैं। बंजिमिहारी ओसीपी अप्रैल माह से बंद पड़ा है। वहीं मोहनपुर ओसीपी भी दो महीने से बंद पड़ा है जिस कारण एरिया प्रबंधन की सांस फूल रही है। सूत्रों का कहना है कि मोहनपुर ओसीपी सभी खदानों से ज्यादा लाभ देने वाली खदान है। पिछले वर्ष मोहनपुर ने अकेले 300 करोड़ रुपये से ज्यादा लाभ किया था। इस वर्ष आठ महीना बंद रहने के बावजूद सौ करोड़ रुपया से ज्यादा लाभ अर्जित किया है। इसलिए ईसीएल प्रबंधन के निगाहें मोहनपुर ओसीपी पर ज्यादा टिकी हुई हैं। सबसे ज्यादा लाभ देने वाला प्रबंधन के सामने एक बार फिर से चुनौती सामने खड़ी है। सालानपुर एरिया के मोहनपुर ओसीपी जमीन की समस्या से जूझ रही है। वहीं यदि प्रबंधन जमीन उपलब्ध नहीं करा पाता है तो कोयला उत्पादन बंद रहेगा। मालूम हो कि मोहनपुर ओसीपी पिछले वर्ष 21 जून को बंद हुआ था। एरिया प्रबंधन ने किसी तरह आठ महीने बाद माइंस को चालू करवाया। ठेकेदार ने किसी तरह चार महीना खींचकर चलाया। अब वह खुद पूंजी फंसाना नहीं चाह रहा है।
क्या कहता है ठेकेदार
ठेकेदार का कहना है कि प्रबंधन के कहने पर चार महीना घाटा सहकर भी कोयला उत्पादन किया ताकि वार्षिक उत्पादन लक्ष्य पूरा करने में सफल हो। ठेकेदार ने कहा कि अब कोयला उत्पादन करने का कोई स्कोप ही नहीं बचा है। वहीं जब तक जमीन उपलब्ध नहीं होगी, तब तक पूंजी फंसाना मुनासिब नहीं है। प्रबंधन जमीन उपलब्ध करेगा, तभी कोयला उत्पादन संभव है।
जमीन को लेकर 26 मई को बोर्ड बैठक होगा
सूत्रों का कहना है कि आगामी 26 मई को ईसीएल बोर्ड की बैठक में उस जमीन को लेकर फैसला होने का अनुमान है। सूत्रों ने बताया कि पहाड़गोड़ा गांव के विस्थापन करने के लिए पैसे की जरूरत है। इसके लिए कंपनी को बोर्ड में सभी निदेशकों का सहमत होना जरूरी है। बोर्ड में अनुमोदन होने के बाद ही समस्या का समाधान हो सकता है। प्रबंधन कब तक जमीन उपलब्ध करा पाएगा, यह कोई बताने को तैयार नहीं है। ईसीएल प्रबंधन सिर्फ यही कह रहा है कि प्रयास जारी है।
जमीन उपलब्ध कराना सबसे बड़ी चुनौती
जमीन उपलब्ध कराना प्रबंधन के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। यह समस्या सिर्फ मोहनपुर ओसीपी में नहीं बल्कि सभी एरिया में बनी हुई है। जानकारों ने बताया कि मोहनपुर ओसीपी के सामने एक मंदिर बना हुआ है। उसे हटाना प्रबंधन के सामने चुनौती बनी हुई है। प्रबंधन और ग्रामीणों के बीच कई दौर की बैठकें हो चुकी है परंतु समस्या का कोई हल नहीं निकला है। खदान विस्तारीकरण करने के लिए 500 हेक्टेयर जमीन चाहिए जिसमें से मात्र 150 हेक्टेयर जमीन उपलब्ध हो पाई है जिसमें कोयला खनन किया जा चुका है।