

मिदनापुर: पश्चिम मिदनापुर जिले के अंर्तगत आने वाले शालबोनी के कर्णगढ़ पंचायत के पीरचक इलाके में रहने वाले ज्यादातर लोग लोधा शबर समुदाय के हैं। जहां के निवासियों के लिए जंगल ही सब कुछ है। उनका जीवन ही जंगल के ऊपर टिका है। शहरी आबोहवा से दूर रहने वाले उन लोगों के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करना आसान नहीं है। एक तो आर्थिक रूप से कमजोर, जंगल के ऊपर निर्भर लोधा शबर परिवार को अपना रोज का खर्च चलाना ही बोझ सा प्रतीत होता होगा।
ऐसे में उन परिवार के लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बारे में सोचते भी नहीं थे लेकिन जिला प्रशासन की ओर से भोरेर आलो नामक स्कूल खोल कर उन्हे शिक्षा मुहैया कराई जा रही है। यह कहना अतिशयोक्ति नही होगी कि ‘‘भोरेर आलो’’ लोधा सबर परिवार के बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगा रहा है। उस गांव में रहने वाले अधिकतर लोगों का कहना है कि उन्होने सोचा नही था कि उनके बच्चे स्कूल जा पाएंेगे जब कि वह लोग अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते थे लेकिन अब भोरेर ऑलो ने सचमुच उनके बच्चों की जिंदगी बदल दी है। बच्चे भी रोजाना खुशी मन से उस शिक्षण केंद्र में जाते हैं जहां पर नियुक्त की गई शिक्षिका उन्हे पढ़ाती है। गांव के लोगों ने बताया कि प्रशासन की पहल से कुछ ही महीनों में गांव की तस्वीर बदल गई है। गाँव में केवल शिक्षा की सुविधा ही नहीं अब सौर ऊर्जा से चलने वाला पंप लग गया है। जिससे ग्रामीणों को पीने का पानी मिल रहा है, उसके अलावा हर घर में बिजली भी पहुंच गई है। धीरे-धीरे पीरचक गांव को एक नई पहचान मिल रही है। लोधा-शबर भी नई ज़िंदगी जीना सीख रहे हैं। गाँव के बच्चे भी स्कूल जाकर पढ़ाई कर रहे हैं। मालूम हो कि ग्रामीणों की स्थिति के बारे में जानने के बाद नव स्थानंतरित ज़िला मजिस्ट्रेट खुर्शीद अली कादरी ने तत्काल कार्रवाई के आदेश दिए। प्रशासन ने एक टोटो की व्यवस्था की है ताकि गाँव के बच्चे सुरक्षित स्कूल जा सकें। शालबनी के बीडीओ रोमन मंडल ने कहा, ज़िला मजिस्ट्रेट ने ग्रामीणों की समस्याएँ सुनने के बाद कार्रवाई की। शिक्षा के प्रसार के लिए स्वयंसेवी शिक्षकों की नियुक्ति की गई है। प्रशासन का लक्ष्य है कि लोधा समुदाय के बच्चों को भी मुख्यधारा की शिक्षा का अवसर मिले।