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शारदीय नवरात्रि: मां दुर्गा के हर रूप में समाई है अद्वितीय शक्तियां

लेखक: श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामण्डलेश्वर अनन्तश्री विभूषित पूज्यपाद श्री स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज

नई दिल्ली: शारदीय नवरात्र का महत्व आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी है। नवरात्र का समय देवी भगवती की उपासना के माध्यम से आत्मिक शक्ति, मानसिक शान्ति और शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ाने का एक अलभ्य अवसर होता है। इस कालखण्ड में आहार-विहार का संयम और साधना, व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और आंतरिक शक्तियों को जाग्रत करने का कार्य करता है।

भगवती देवी दुर्गा, जो इच्छा, ज्ञान और क्रिया शक्ति की प्रतीक हैं, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की आधारभूत और क्रियात्मक शक्ति के रूप में आराधित होती हैं। मां ललिता राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी की उपासना से भक्तों को आत्मिक बल, जीवन में संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। नवरात्र के नौ दिनों में किया गया तप और साधना व्यक्ति को सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों से मुक्त कर कल्याणकारी जीवन की ओर प्रेरित करता है।

यह कालखण्ड निस्संदेह आत्मिक उत्थान और व्यक्तिगत विकास के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होता है। मानव मन में अंतर्निहित दुष्प्रवृत्तियों का निर्मूलन मां पराम्बा की कृपा अर्थात् निर्मल मति और आत्म-शक्ति के जागरण से सम्भव है। अंतःकरण की पूर्ण सुचिता के उपरान्त प्रस्फुटित ‘शुभता और दिव्यता’ ही शक्ति आराधना की फलश्रुति है। इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति के रूप में जो सचराचर जगत में विद्यमान हैं, उन मां पराम्बा के आराधना का पवित्र पर्व शारदीय नवरात्रि आप सभी के लिए शुभ और मंगलमय हो।

मां नवदुर्गा का ऐसे हुआ सृजन

सम्‍पूर्ण संसार की उत्पत्ति का मूल कारण शक्ति ही है, जिसे ब्रह्मा, विष्‍णु व शिव तीनों ने मिलकर मां नवदुर्गा के रूप में सृजित किया, इसलिए मां दुर्गा में ब्रह्मा, विष्‍णु व शिव तीनों की शक्तियां समाई हुई हैं। जगत की उत्पत्ति, पालन एवं लय तीनों व्यवस्थाएं जिस शक्ति के आधीन सम्पादित होती है वही हैं – पराम्बा मां भगवती आदिशक्ति। शारदीय नवरात्रि का महात्म्य सर्वोपरि इसलिए है कि इसी कालखण्ड में देवताओं ने दैत्यों से परास्त होकर आद्या शक्ति की प्रार्थना की थी और उनकी पुकार सुनकर देवी मां का आविर्भाव हुआ। उनके प्राकट्य से दैत्यों के संहार करने पर देवी मां की स्तुति देवताओं ने की थी। नवरात्रि राक्षस महिषासुर पर देवी मां दुर्गा की विजय का प्रतीक है, जो नकारात्मकता के विनाश और जीवन में सकारात्मकता के पुनरुद्धार का प्रतीक है।

मां का हर रूप अद्वितीय है

आदिशक्ति देवी मां दुर्गा का हर रूप एक अद्वितीय गुण या शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। जैसे - शैलपुत्री शक्ति और स्थिरता का प्रतिनिधित्व करती हैं, ब्रह्मचारिणी तपस्या का प्रतीक हैं, और सिद्धिदात्री परम तृप्ति और ज्ञान प्रदान करती हैं। आदिशक्ति या आदि पराशक्ति या महादेवी मां दुर्गा को सनातन, निराकार, परब्रह्म, जो कि ब्रह्माण्ड से भी परे एक सर्वोच्च शक्ति के रूप में माना जाता है। शाक्त सम्प्रदाय के अनुसार यह शक्ति मूल रूप में निर्गुण है, परन्तु निराकार परमेश्वर जो न स्त्री है न पुरुष, को जब सृष्टि की रचना करनी होती है तो वे आदि पराशक्ति के रूप में उस इच्छा रूप में ब्रह्माण्ड की रचना, जनन रूप में संसार का पालन और क्रिया रूप में वह पूरे ब्रह्माण्ड को गति तथा बल प्रदान करते है।

नवरात्रि मां के अलग-अलग रूप के अविलोकन करने का दिव्य पर्व है। माना जाता है कि नवरात्र में किए गए प्रयास, शुभ-संकल्प बल के सहारे देवी दुर्गा की कृपा से सफल होते हैं। काम, क्रोध, मद, मत्सर, लोभ आदि जितने भी राक्षसी प्रवृति हैं, उसका हनन करके विजय का उत्सव मनाते हैं। हर एक व्यक्ति जीवनभर या पूरे वर्षभर में जो भी कार्य करते-करते थक जाते हैं तो इससे मुक्त होने के लिए इन नौ दिनों में शरीर की शुद्धि, मन की शुद्धि और बुद्धि में शुद्धि आ जाए, सत्व शुद्धि हो जाए; इस तरह के शुद्धिकरण करने का, पवित्र होने का त्योहार है – यह नवरात्रि। नवरात्रि उत्सव बुराइयों से दूर रहने का प्रतीक है। यह लोगों को जीवन में उचित एवं पवित्र कार्य करने और सदाचार अपनाने के लिए प्रेरित करता है।

इस पर्व पर सकारात्मक दिशा में कार्य करने पर मन्थन करना चाहिए, ताकि समाज में सद्भाव के वातावरण का निर्माण हो सके। नवरात्रि काल आहार की शुद्धि के साथ मंत्र की उपासना का काल है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तरंगों से भरा हुआ है। मंत्र के माध्यम से उन तरंगों को जो शक्ति और सामर्थ के रूप में बिखरी हुई है, उन्हें आकर्षित किया जा सकता है। इस काल की तरंगें बहुत सामर्थवान है। उनके साथ एकीकृत होकर हम अप्रत्याशित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। अतः मन्त्र वातावरण से सकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित कर आपके पास लाते हैं और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करते हैं।

देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का यह पर्व हमें मातृशक्ति की उपासना तथा सम्मान की प्रेरणा देता है। समाज में नारी के महत्व को प्रदर्शित करने वाला यह पर्व हमारी संस्कृति एवं परम्परा का प्रतीक है। मां ही आद्यशक्ति है, सर्वगुणों का आधार, राम-कृष्ण, गौतम, कणाद आदि ऋषि-मुनियों, वीर-वीरांगनाओं की जननी हैं। नारी इस सृष्टि और प्रकृति की ‘जननी’ है। नारी के बिना तो सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जीवन के सकल भ्रम, भय, अज्ञान और अल्पता का भंजन एवं अंतःकरण के चिर-स्थायी समाधान करने में समर्थ हैं – विश्वजननी कल्याणी ललिताराजराजेश्वरी पराशक्ति श्री मां दुर्गा जी की उपासना का ये दिव्य पर्व शारदीय नवरात्र।

नवरात्रि ईश्वर के स्त्री रूप को समर्पित है

दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती स्त्री-गुण यानी स्त्रैण के तीन आयामों के प्रतीक हैं। “मां” यह वो अलौकिक शब्द है, जिसके स्मरण मात्र से ही रोम−रोम पुलकित हो उठता है, हृदय में भावनाओं का अनहद ज्वार स्वतः उमड़ पड़ता है और मनोमस्तिष्क स्मृतियों के अथाह समुद्र में डूब जाता है। ‘मां’ वो अमोघ मंत्र है, जिसके उच्चारण मात्र से ही हर पीड़ा का नाश हो जाता है। ‘मां’ की ममता और उसके आंचल की महिमा को शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है, उसे मात्र अनुभव किया जा सकता है।

मां सिर्फ आसमान में कहीं स्थित नही हैं, उसे कहते हैं कि ‘या देवी सर्वभुतेषु चेतनेत्यभिधीयते …’ – अर्थात्, ‘सभी जीव-जन्तुओं में चेतना के रूप में ही मां देवी तुम स्थित हो’। नवरात्रि मां के अलग-अलग रूप को निहारने का सुन्दर त्यौहार है। काम, क्रोध, मद, मत्सर, लोभ आदि जितने भी राक्षसी प्रवृति हैं, उसका नाश करके विजय का उत्सव मनाते हैं। शारदीय नवरात्रि का यह उत्सव हमें मातृशक्ति की आराधना करने की प्रेरणा देता है। भारतीय संस्कृति में यह मान्यता है कि जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता विचरण करते हैं। इस पर्व में आत्म-संयम और शुद्धि के लिए व्रत-उपवास का विशेष महत्व है।

वेदों में ‘मां’ को सर्वप्रथम पूजनीय

इस पर्व पर हम सभी समाज में महिलाओं की समान भागीदारी, उनके गौरव को बनाये रखने और 'कन्या भ्रूण-हत्या' रोकने का संकल्प लें। नवरात्रि नवनिर्माण के लिए होती है, चाहे आध्यात्मिक हो या भौतिक। आदिकाल से ही मनुष्य की प्रकृति शक्ति साधना की रही है। शक्ति साधना का प्रथम रूप दुर्गा ही मानी जाती है। मनुष्य तो क्या देवी-देवता, यक्ष-किन्नर भी अपने संकट निवारण के लिए 'मां दुर्गा' को ही पुकारते हैं। हमारे देश में ‘मां’ को ‘शक्ति’ का रूप माना गया है और वेदों में ‘मां’ को सर्वप्रथम पूजनीय कहा है।

इस श्लोक में भी इष्टदेव को सर्वप्रथम ‘मां’ के रूप में ही उद्बोधित किया गया है – ‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या, द्रविणम त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम देव देव …’। हमारे वेद, पुराण, दर्शनशास्त्र, स्मृतियां, महाकाव्य, उपनिषद आदि सब ‘मां’ की अपार महिमा के गुणगान से भरे पड़े हैं। असंख्य ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों, पंडितों, महात्माओं, विद्वानों, दर्शनशास्त्रियों, साहित्यकारों आदि ने भी ‘मां’ के प्रति पैदा होने वाली अनुभूतियों को कलमबद्ध करने का भरसक प्रयास किया है।

इन सबके बाद भी ‘मां’ शब्द की समग्र परिभाषा और उसकी अनन्त महिमा को आज तक कोई शब्दों में नहीं पिरो पाया है, क्योंकि मां अनन्त है, मां महान है।

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