कोलकाता: शिव यानि कल्याणकारी होने के साथ ही बहुत भोले हैं और इसी भोलेपन की वजह से उन्हे भोला कहते हैं उन्हें अपनी सादगी व सहज प्रसन्न हो जाने के गुण से देव नहीं महादेव का दर्जा मिला है।
उनके पास अपने लिए भले ही वैभव न हो, पर वे अपने भक्तों के लिए हर वैभव प्रदान करते हैं। वाहन के नाम पर मात्र, नंदी और संपदा के नाम पर केवल एक मृगछाला, कमंडल और त्रिशूल मात्र रखने वाले शिव तीन लोक धरती पर बसा कर खुद वीराने में रहते हैं। भले ही कंठ में विष और गले में सांप की माला हो पर त्रिलोकी शिव सबके जीवन में अमृत ही घोलते हैं।
पुराणों के अनुसार शिव कल्याण के प्रतीक हैं वे पूरी तरह काम मुक्त, वीतरागी सृष्टि को हरा भरा रखने वाले देव हैं और देव-दानव, मानव, किन्नर सबका हित करते हैं।
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एक लोटा जल से ही प्रसन्न हो जाते शिव
‘शिव’ अगर विश्व कल्याण का प्रतीक है तो ‘रात्रि’ अज्ञान अन्धकार से होने वाले नैतिक पतन का द्योतक है। शिव मानव मात्र को सत्यज्ञान द्वारा अन्धकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं। कहने वाले कहते हैं कि भगवान शिव एक लौटा जल प्रतिदिन शिव पर चढ़ाने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं और सबका कल्याण करते हैं। शिवरात्रि पर तो उपवास मात्र से ही इच्छित सुख की प्राप्ति होती है।
अनादि अनंत, सृष्टि के विनाशक व कर्ता
शिव के भक्तों का मानना है कि शिव के अतिरिक्त संसार में कुछ भी सत्य नहीं है। वे ही अनादि अनंत और सृष्टि के विनाशक व कर्ता हैं। भले ही शिव में तीनों लोकों को नष्ट करने की शक्ति हो पर वे ऐसा तब तक नहीं करते जब तक कि ब्रहमांड में एक भी कल्याणकारी तत्व मौजूद रहता है जब अधर्म असहनीय हो जाए तो शिव तीसरा नेत्र खोलकर सृष्टि का विनाश कर नई सृष्टि के निर्माण पथ प्रशस्त करते हैं ।
सभी देवताओं से भिन्न
भगवान शिव जितने सरल है उतने ही रहस्यमय भी हैं। उनका रहन-सहन, आवास, गण आदि सभी देवताओं से भिन्न हैं। वह अकेले ऐसे देव हैं जो वैभव से दूर श्मशान में भस्म रमाकर रहते हैं, और भाले इतने कि रावण, भस्मासुर तक को वरदान दे देते हैं राक्षसों को भी अभय दे देते हैं पर जब ये शक्तियां विनाशक व अनियंत्रित हो जाती हैं तो वे ही इनका नाश भी करते हैं। विश्व कल्याण के लिए वे स्वयं विषपान करते हैं और स्वयं नीलकंठ बन सब कष्ट सह जाते हैं।
पुराणों व मिथकों के अनुसार भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे। पौराणिक कथाओं के के अनुसार भगवान विष्णु नाभि से ब्रह्मा जी का जन्म हुआ पर जल्द ही ‘हम दोनों में श्रेष्ठ कौन है’ का विवाद होने लगा इस पर वहां एक अद्भुत ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। उस ज्योतिर्लिंग को वे समझ नहीं सके और उसके छोर का पता लगाने का प्रयास किया, परंतु सफल नहीं हो पाए। जब दोनों देवता निराश हो गए तब उस ज्योतिर्लिंग ने अपना परिचय देते हुए कहा ‘मैं शिव हूं, और मैंने ही आप दोनों को उत्पन्न किया है।’ तब से ही विष्णु तथा ब्रह्मा ने भगवान शिव की महत्ता को स्वीकार किया और उसी दिन से शिवलिंग की पूजा की जाने लगी।