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भारत का GDP मजबूत हुआ लेकिन रुपया गिरा? क्या करेगी मोदी सरकार

नई दिल्ली: चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि दर उम्मीद से बेहतर 7.8 प्रतिशत रही। अमेरिका के भारी शुल्क लगाए जाने से पहले की 5 तिमाहियों में यह सबसे अधिक है। भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है, क्योंकि अप्रैल-जून में चीन की जीडीपी वृद्धि 5.2 प्रतिशत रही थी।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र के अच्छे प्रदर्शन के कारण जीडीपी वृद्धि दर उम्मीद से बेहतर रही। इसमें व्यापार, होटल, वित्तीय और रियल एस्टेट जैसी सेवाओं से भी मदद मिली। जीडीपी निश्चित अवधि में देश की सीमा में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को बताता है। आंकड़ों के अनुसार, इससे पहले उच्चतम जीडीपी वृद्धि 2024 के जनवरी-मार्च में 8.4 प्रतिशत थी।

क्षेत्रवार स्थिति

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़ों के अनुसार, कृषि क्षेत्र में 3.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। जो 2024-25 की अप्रैल-जून तिमाही में 1.5 प्रतिशत थी। वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर मामूली रूप से बढ़कर 7.7 प्रतिशत हो गई, जबकि एक साल पहले इसी तिमाही में यह 7.6 प्रतिशत थी।

आरबीआई का अनुमान

भारतीय रिजर्व बैंक ने इस महीने की शुरुआत में 2025-26 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था। इसके मुताबिक वृद्धि दर पहली तिमाही में 6.5 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6.7 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 6.3 प्रतिशत रह सकती है।

क्या कहते हैं अर्थशास्त्री

आनंद राठी वेल्‍थ के चीफ इकॉनोमिस्ट सुजान हाजरा ने कहा कि पहली तिमाही में अप्रत्याशित रूप से मजबूत प्रदर्शन के बावजूद कुछ खतरे बने हुए हैं। राहत के प्रस्ताव के बावजूद, सरकारी पूंजीगत व्यय में सालाना आधार पर कम वृद्धि और अमेरिकी शुल्क व जुर्माने से निर्यात पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के कारण आने वाली तिमाहियों में वृद्धि दर में कमी आने की आशंका है। उन्होंने कहा कि लगातार अनिश्चितता के बीच, हम वित्त वर्ष 2025-26 के लिए अपने जीडीपी वृद्धि अनुमान को छह प्रतिशत पर बनाए रखे हुए हैं।

गिरता जा रहा है रुपया

वहीं दूसरी तरफ भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर बढ़ते तनाव के बीच रुपया पहली बार 88 के स्तर को पार कर गया। यह 51 पैसे की गिरावट के साथ 88.09 प्रति डॉलर के अब तक के सबसे निचले स्तर पर बंद हुआ। यह 88.33 तक चला गया था।

आखिर क्या है कारण?

अमेरिका के भारी शुल्क लगाने, विदेशी पूंजी की निरंतर निकासी और महीने के अंत में अमेरिकी डॉलर की मांग से रुपया लगातार दबाव में है। इसके अलावा, घरेलू शेयर बाजारों में नकारात्मक रुख ने भी बाजार की धारणा को प्रभावित किया।

विशेषज्ञों के अनुसार, रुपया नकारात्मक रुख के साथ कारोबार करेगा क्योंकि अमेरिका के भारत पर अतिरिक्त व्यापार शुल्क लगाने से भारत के व्यापार घाटे को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। कमजोर घरेलू बाजार एवं विदेशी पूंजी की बिकवाली के दबाव से रुपये पर और दबाव पड़ सकता है। वैसे डॉलर-रुपये के हाजिर मूल्य के 87.90 से 88.70 के बीच रहने का अनुमान है।

51 पैसे की हुई गिरावट

बता दें कि बीते दिन रुपया, डॉलर के मुकाबले 87.73 पर खुला। फिर लुढ़कर 88.33 प्रति डॉलर के निचले स्तर पर आ गया। अंत में 88.09 प्रति डॉलर के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ जो पिछले बंद भाव के मुकाबले 51 पैसे की भारी गिरावट है।

रुपया गुरुवार को 11 पैसे की बढ़त के साथ डॉलर के मुकाबले 87.58 पर बंद हुआ था। यह पहली बार है जब रुपया 88 प्रति अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। रुपया 10 फरवरी 2025 को कारोबार के दौरान 87.95 प्रति डॉलर पर पहुंचा था। वहीं 5 अगस्त को रुपया, डॉलर के मुकाबले 87.88 पर बंद हुआ था। इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.14 प्रतिशत की बढ़त के साथ 97.94 पर आ गया।

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