संजीवनी

पैंक्रियाटिक कैंसर दिवस के अवसर पर जानिए इसके रोकथाम से जुड़े उपायों को

पैंक्रियाटिक कैंसर : शीघ्र पहचान सबसे अहम

पैंक्रियाटिक कैंसर की उच्च मृत्यु दर और इसके लक्षण आमतौर पर देर से प्रकट होते हैं इसको देखते हुए, इसके शीघ्र पहचान पर ज़ोर दिया जाता है। उपचार के नए तरीकों के आगमन के बाद भी, मेटास्टेटिक चरण में औसत जीवन प्रत्याशा एक वर्ष से भी कम है। इसलिए, सामान्य आबादी के लिए लक्षणों और जांच पद्धति पर ज़ोर देना बहुत ज़रूरी है ताकि इसका शीघ्र निदान किया जा सके और इसका इलाज किया जा सके। हालांकि पैंक्रियाटिक कैंसर के लक्षण आमतौर पर अस्पष्ट होते हैं और शुरुआती चरणों में अक्सर अनुपस्थित होते हैं, जिससे निदान में देरी होती है, फिर भी सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं-

लक्षण

● लगातार पेट या पीठ दर्द।

● अकारण वज़न घटना।

● पीलिया (त्वचा/आँखों का पीला पड़ना) ।

● गहरे रंग का मूत्र, पीला या चिकना मल।

● पारिवारिक इतिहास के बिना वयस्कों में नई शुरुआत वाला मधुमेह।

● थकान, भूख न लगना, पेट फूलना और पाचन संबंधी कठिनाइयां ।

एडवांस्ड स्टेज के लक्षणों में अधिक स्पष्ट पीलिया, दर्द और पाचन संबंधी जटिलताएँ शामिल हो सकती हैं।

स्क्रीनिंग

पैंक्रियाटिक के कैंसर की स्क्रीनिंग मुख्य रूप से उन व्यक्तियों के लिए अनुशंसित की जाती है जो सामान्य आबादी के बजाय आनुवंशिक, पारिवारिक या नैदानिक कारकों के कारण उच्च जोखिम में हैं।

पैंक्रियाटिक कैंसर के अधिकांश मामलों का निदान एडवांस्ड स्टेज में ही हो पाता है, क्योंकि इसके प्रारंभिक लक्षण या तो सूक्ष्म होते हैं या परिलक्षित नहीं होते। कुल मिलाकर, सभी पैंक्रियाटिक के कैंसर रोगियों के लिए 5- वर्ष की जीवित रहने की दर लगभग 10% है, लेकिन यह निदान के चरण और उपचार विकल्पों के आधार पर अलग-अलग होती है।

निदान

निदान में नैदानिक संदेह को इमेजिंग (सीटी, एमआरआई, ईयूएस), रक्त परीक्षण (सीए19-9 सहित) और, यदि आवश्यक हो, बायोप्सी भी करायी जाती है। चूंकि विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते और पैंक्रियाज काफी गहरे स्थान पर होता है अत: ट्यूमर का पता अक्सर एडवांस्ड स्टेज में ही चल पाता है।

रोकथाम

अधिकांश मामलों को रोका नहीं जा सकता, लेकिन जोखिम कम करने के सामान्य उपायों में शामिल हैं:

● तंबाकू सेवन से बचना।

● स्वस्थ वजन, संतुलित आहार और नियमित शारीरिक गतिविधि बनाए रखना।

● मधुमेह और क्रोनिक पैंक्रियाटाइटिस के जोखिम कारकों का प्रबंधन। उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों को आनुवंशिक परामर्श और पर्सनलाइज्ड रिस्क असेसमेंट से लाभ हो सकता है।

रोगनिदान को प्रभावित करने वाले कारक

● निदान के चरण: प्रारंभिक चरण में पता लगने पर, जब ट्यूमर एक ही स्थान पर होता है, उसे शल्य चिकित्सा द्वारा हटाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में जीवित रहने की संभावना में काफी सुधार होता है। शल्य चिकित्सा और सहायक चिकित्सा के बाद 5 साल की जीवित रहने की दर 30-50% तक बताई गई है।

● ट्यूमर का आकार और फैलाव: बड़े ट्यूमर या लिम्फ नोड प्रभावित या दूरस्थ मेटास्टेसिस वाले ट्यूमर के परिणाम बहुत खराब होते हैं, एडवांस्ड स्टेज में 5 साल तक जीवित रहने की संभावना 5% से भी कम होती है।

● पेशेंट फैक्टर्स: आयु, प्रदर्शन स्थिति और अन्य बामारियां रोग के निदान और उपचार की सहनशीलता को प्रभावित करती हैं।

संक्षेप में, जागरूकता और टार्गेटेड जांच का लक्ष्य जीवित रहने की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए शुरुआती चरणों में ही निदान कराने पर जोर देना है।

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