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साइबर धोखाधड़ी के आकाओं की तिलिस्मी दुनिया, थाईलैंड से म्यांमार तक फैला है रैकेट

थाईलैंड एयरपोर्ट से वाहनों में भरकर ले जाते थे म्यांमार सीमा पर नाव से नदी पार कराकर बंधक बनाकर रखते थे अभियुक्त साइबर गुलामों को रिहा करने के एवज में मांगते थे 4 लाख रुपये

कोलकाता : उच्च वेतन वाली ‘टेक जॉब’ के लालच में विदेश गए बंगाल समेत कई राज्यों के युवक कैसे म्यांमार के जंगल में बने साइबर धोखाधड़ी के गुलाम बन गए, इसका सनसनीखेज खुलासा राज्य की साइबर क्राइम विंग (सीसीडब्ल्यू) की जांच में हुआ है। उत्तर 24 परगना, दार्जिलिंग और कर्सियांग के 20 युवकों को हाल ही में म्यांमार के कायिन राज्य स्थित केके पार्क कंपाउंड से छुड़ाकर भारत लाया गया। इन सभी से पूछताछ में तस्करी का एक जैसा रास्ता सामने आया है।

बैंकॉक एयरपोर्ट से शुरू हुआ अपहरण

पीड़ितों के अनुसार, जैसे ही वे बैंकॉक के सुवर्णभूमि एयरपोर्ट से बाहर निकले, अजनबी उनके फोन में रखी तस्वीर देखकर उन्हें पहचान लेते थे। थाई, मलेशियाई या चीनी भाषा बोलने वाले हैंडलर उन्हें जबरन वैन में बैठाकर ले जाते थे। होटल में रुकना या कोई ओरिएंटेशन सेशन नहीं होता था। गाड़ियां लगातार उत्तर दिशा की ओर हाईवे पर दौड़ती रहती थीं, फिर अचानक गांवों और बागानों के बीच संकरी सड़कों पर मुड़ जाती थीं ताकि थाई पुलिस की नजर न पड़े।

सीसीडब्ल्यू अधिकारी ने बताया, ‘रास्ते में कई बार गाड़ियां बदली जाती थीं ताकि ट्रेस करना मुश्किल हो जाए। मैसोत शहर और आधिकारिक बॉर्डर क्रॉसिंग को पूरी तरह बाइपास किया जाता था।’

मोई नदी पार कर म्यांमार में तस्करी

अंतिम चरण में गाड़ियां बागानों और जंगलों के कच्चे रास्तों से मोई नदी के उन अनौपचारिक घाटों तक पहुंचती थीं जहां गश्त कम होती है। रात के अंधेरे में पीड़ितों को लकड़ी की छोटी नावों, इन्फ्लेटेबल राफ्ट या अस्थायी फेरी पर बैठाकर नदी पार करायी जाती थी। नदी के बीच में ही कई युवकों को एहसास हुआ कि वे अवैध रूप से म्यांमार में घुसाए जा रहे हैं। दूसरी तरफ हथियारबंद लोग इंतजार कर रहे होते थे। म्यांमार के म्यावडी पहुंचते ही चीनी भाषी हैंडलर पासपोर्ट छीन लेते थे और मोटरसाइकिल या पिकअप से उन्हें सीधे केके पार्क कंपाउंड पहुंचा देते थे।

केके पार्क: साइबर अपराध की फैक्ट्री

कंपाउंड में पहुंचते ही पीड़ितों से उनका फोन छीन लिया जाता था। उन्हें फर्जी ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म, क्रिप्टोकरेंसी स्कैम, फिशिंग, सोशल मीडिया हनीट्रैप और रोमांस फ्रॉड का काम सौंपा जाता था। निशाने पर भारत, यूरोप और दक्षिण-पूर्व एशिया के लोग होते थे। एक अधिकारी ने बताया, ‘16-18 घंटे काम, लगातार निगरानी, टारगेट पूरा न होने पर पिटाई, भोजन न देना या सार्वजनिक अपमान—यहां इंसान नहीं, मशीन की तरह काम लिया जाता था।’ कंपाउंड में चीन, नेपाल, वियतनाम, अफ्रीका और भारत के हजारों युवक कैद थे। भागने की कोशिश करने वालों को बेरहमी से पीटा जाता था। रिहाई के लिए परिजनों से 4 लाख रुपये तक वसूले जाते थे।

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