बोझ

कहानी
bohj
sanmarg.instory
Published on

शीतल बाबू को आज अपनी पत्नी उमा की पहली बरसी पर रह-रह कर याद आई और उनकी आँखों से आँसू टपक पड़े। उन्हें अपनी पत्नी की यह बात बरबस याद आती थी कि, अपनी पैतृक संपत्ति हरगित मत बेचना वरना दर-दर के मोहताज हो जाओगे, समय बड़ा खराब है। पत्नी की मौत के बाद अपने दोनों बेटों को किस तरह छाती पर पत्थर रखकर उन्हें पाल-पोस कर लिखाया पढ़ाया, भाग्यवश एक बेटा डॉक्टर तो दूसरा कारोबारी बन गया।

अपने बुढ़ापे की परवाह न करके वे बच्चों का ही सुख खोजने में इतना मशगूल हो गये कि बेटों की चिकनी चुपड़ी बातों में आकर अपना मकान व खेत तक बेच दिये। वे मन ही मन खुश होते कि उनका बुढ़ापा आराम से कटेगा, बच्चे उनका सहारा बनेंगे। अच्छे दिन आयेंगे।

लेकिन शीतल बाबू का आज वह भ्रम टूट चुका था। दोनों बेटों का परिवार बसने के बाद वे इतना खो गये थे कि, उन्हें पिता की याद तक न आती थी। शीतल बाबू कभी एक बेटे के घर चले जाते तो कभी दूसरे के यहाँ। उन्हें अब बुढ़ापा किसी शरणार्थी से कम नहीं लगता था। लेकिन मरता क्या न करता। बस! अपना नसीब यही है, सोचकर आँसू के घूंट पीकर सब्र कर लेते।

शीतल बाबू अपने पोते-पोतियों के बीच रहकर समय काट लेते थे। एक दिन शाम को वे अपने पोते के संग घर आंगन मे घूम रहे थे, तभी उनका कारोबारी बेटा भी वहाँ आ पहुंचा। दोनों भाइयों को एक साथ आपस में बैठे देख पिता फूले न समा रहे थे।

तभी दोनों बेटों ने सहमते हुए कहा-बाबूजी, हमें आपकी काफी चिन्ता है।

अब हमारा कामकाज कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। अतः हम आपकी पूरी तरह से सार संभाल नहीं कर पायेंगे!

इतना सुनते ही शीतल बाबू ने कहा-बेटा, घुमा-फिराकर बात न करो, साफ-साफ कहो। मैंने अपना सारा रुपया-पैसा दोनों भाइयों में बाँट दिया है। कहीं मैं अब तुम लोगों पर बुढ़ापे में बोझ तो नहीं बन रहा हूँ ?

तभी बड़े बेटे ने कहा-बाबूजी, हमने सोचा है क्यों रहने न आपको शहर के सबसे प्रतिष्ठित वृद्धाश्रम में रहने के लिए भेज दें! यूँ भी माँ के जाने के बाद अकेलापन आपको परेशान कर देता है। हमने आपका नाम वृद्धाश्रम में लिखवा भी दिया है। आप वहाँ अपनी हम उम्र के लोगों के साथ रहकर अच्छे से समय पास कर लेंगे। हम आपसे समय-समय पर सपरिवार आकर मिलते रहेंगे! आपका जब जी चाहे बच्चों से मिलने घर आ सकते हैं। अब आप अपना जरुरत का सारा सामान साथ लेने के लिए इकट्ठा कर बाँध लें। कल हम आपको वहाँ छोड़ देंगे।

बेटे का फरमान सुनते ही मानों शीतलबाबू के पैरों तले जमीन खिसक गई। सिर पर हाथ रख सोचने को मजबूर हो गए-क्यों मैं बूढ़ा बाप इन पर बोझ बन गया हूँ ? असमंजस में डूबे शीतल बाबू को लगने लगा शायद दोष उनका ही है। पत्नी के स्वर रह रह कर फिर उनके कानों में गूंज रहे थे...। चेतन चौहान(सुमन सागर)


संबंधित समाचार

No stories found.

कोलकाता सिटी

No stories found.

खेल

No stories found.
logo
Sanmarg Hindi daily
sanmarg.in