कोलकाता : हमारे देश में पूजा, प्रार्थना, अध्यात्म शक्तियों की आराधना का एक से बढ़कर एक अनुष्ठान मनाए जाते हैं, जिनके महात्म्य के बारे में कोई प्रश्न नहीं है। लेकिन ‘छठ पूजा’ एक ऐसा पर्व है जिसमें उत्साह, उमंग, सादगी के साथ शुद्धता – पवित्रता के साथ प्रकृति की पूजा प्राकृतिक उपादानों के द्वारा की जाती है। यह स्वास्थ्य, सफलता एवं समृद्धि का पावन पर्व है। अगर हमें शुद्धता के साथ पवित्रता का बोध करना हो तो छठ पूजा के द्वारा सीखा जा सकता है। आस्था तथा भावना जो भी हो, लेकिन छठ पूजा के व्रती से हमें बहुत कुछ सीख मिलती है है। छठ-व्रत का प्रथम कदम उपवास है। यह पूजा लगभग चार दिनों तक चलती है। मानो ऐसा लगता है कि चार-दिनों की जिन्दगी का हमें संदेश मिल रहा है। उपवास को शरीर के स्वास्थ्य के साथ भी सम्बन्ध है। कई तरह के रोगोपचार में उपवास ही चिकित्सा कर्म माना गया है। उपवास से हमारे शरीर को स्वास्थ्य मिलेगा ही।
प्रकृति के करीब रहने का संदेश
छठ पूजा का दूसरा कदम है उसकी पूजन सामग्री की तैयारी करना। आज बाजारवाद का स्वरूप कितना बदल गया है, उसमें छठ व्रती को कितनी समस्याओं से निबटना पड़ता है वह तो करने वाले को ही पता होता है। घी से लेकर फल-फूल, गन्ना (ईख) वह भी पत्तों के साथ, फल जो समस्त ऋतुफल होते हैं, वह भी ताजे-ताजे फल का उपयोग होना चाहिये। अच्छा-से अच्छा होना चाहिये। गुड़ जातीय मिष्ठान, जिसे ठेकुआ नाम दिया गया है, को उपवास की स्थिति में भी स्वयं अपने हाथों से पूजा करने वाली व्रती के द्वारा बनाया जाता है। अन्दाजा किया जा सकता है कि यह कितनी बड़ी साधना है। लेकिन इसके द्वारा हमें यह सीख मिलती है कि हमें ऋतुओं के ही फल-फूल तथा प्रकृति प्रदत्त पदार्थों का ही उपयोग करके अपने शरीर एवं स्वास्थ्य की रक्षा करनी चाहिए। गन्ना (ईख), नारंगी, बिजोरा नींबू, कमरख, आंवला, मूली, अदरक, सुपाड़ी, नारियल, शकरकंद, विशेष मात्रा में केला, लवंग, इलायची, किशमिश, पान पत्ता, नाशपाती, सेव, सिंघाड़ा (पानी फल) इत्यादि ऋतुफल ही इस पूजा में प्रयोग किए जाते हैं। वह भी हस्तनिर्मित सूप में सुव्यवस्थित करके प्रकृति के समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्यदेव को समर्पित किए जाते हैं। यह व्रती के द्वारा भगवान सूर्य देव के लिये कृतज्ञता है जिसके बिना हमें ये सब फल-फूल जो हमारे आहार के द्वारा शरीर का पोषण करते हैं, संभव ही नहीं हो पाते।
सूर्य उपासना के अनेक लाभ
36 घंटे का निराहार उपवास जिसमें जल का भी उपयोग नहीं होता है। आयुर्वेद के अनुसार इस तरह का उपवास शरीर की पाचन क्रिया को सक्रिय करता है, लेकिन यह अत्यधिक और निर्जलीकरण कर सकता है, अतः इसका भी ध्यान रखना चहिये। आयुर्वेद के अनुसार सूर्य की किरणों में प्राकृतिक उपचार शक्तियां होती हैं, जो शरीर में विटामिन डी का उत्पादन करती हैं और इम्यून सिस्टम को मजबूत करती हैं। अतः छठ पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि यह स्वास्थ्य और ताजगी (ऊर्जा) को बढावा देने का एक अवसर भी है। आयुर्वेद के दृष्टिकोण से इस पर्व का पालन करने से न केवल शरीर को ऊर्जा मिलती है, बल्कि मानसिक और मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। इसलिये इस पर्व के दौरान आयुर्वेदिक आहार पद्धति, जीवनशैली और उपचार विधियों को अपनाकर हम अपनी सेहत को बनाए रख सकते हैं और इस महापर्व का सही तरीके से लाभ उठा सकते हैं।
ज्वर की सबसे बड़ी औषधि है उपवास
हमारे देश में ही नहीं, पूरे विश्व में ज्वर यानी बुखार सबसे बड़ा रोग माना गया है। आयुर्वेद ने उपवास के रूप में इसकी सबसे बड़ी औषधि से हमें अवगत कराया है। उपवास से शरीर की अंदरूनी सफाई तो हो ही जाती है, सारे एंजाइम भी पुनः सक्रिय हो जाते हैं। इसी कारण रोग होते ही सबसे पहले खाने से मन उबता है। मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षी भी स्वास्थ्य खराब होने पर सबसे पहले खाना त्याग देते हैं। इसी कारण लगभग सभी धर्मों में उपवार का प्रावधान अवश्य किया गया है। छठ-पूजा की सार्थकता स्वास्थ्य-शुद्धता तथा पवित्रता ही उद्देश्य है। इसी लिए इसका महत्व तथा प्रभाव दिनोदिन बढ़ रहा है। इस पावन अवसर पर सभी पाठक सुधि वृन्द को हार्दिक शुभकामना।