Devshayani Ekadashi 2023: कब है देवशयनी एकादशी ? जानें शुभ … | Sanmarg

Devshayani Ekadashi 2023: कब है देवशयनी एकादशी ? जानें शुभ …

कोलकाता : आषाढ़ मास में मनाई जाने वाली एकादशी को आषाढ़ एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसे देवशयनी एकादशी, हरिशयनी एकादशी और पद्मनाभा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार, यह समय भगवान विष्णु का शयनकाल होता है यानी कि इस दिन से श्रीहरि भगवान विष्णु चार महीनों के लिए क्षीरसागर में योग निद्रा के लिए चले जाते हैं, इसीलिए इसे हरिशयनी एकादशी कहते हैं। चार महीने की इस अवधि को चतुर्मास भी कहते हैं। इस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इस बार देवशयनी एकादशी का व्रत 29 जून, गुरुवार को रखा जाएगा।

देवशयनी एकादशी शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, देवशयनी एकादशी का व्रत इस बार 29 जून 2023, गुरुवार को रखा जाएगा। देवशयनी एकादशी तिथि की शुरुआत 29 जून को सुबह 03 बजकर 18 मिनट पर होगी और इस तिथि का समापन 30 जून को रात 02 बजकर 42 मिनट पर होगा। देवशयनी एकादशी के पारण का समय 30 जून को दिन 01 बजकर 48 मिनट से लेकर शाम 04 बजकर 36 मिनट पर होगा।

देवशयनी एकादशी पूजन विधिव्रत करन वाले साधकों को देवशयनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करना चाहिए। फिर घर के पूजा स्थल को साफ करने के बाद गंगाजल से शुद्ध कर लें। इसके बाद एक आसान बनाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें। फिर भगवान का षोडशोपचार पूजन करें। इसके बाद भगवान को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। फिर भगवान के हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें। इसके बाद भगवान को पान-सुपारी अर्पित करें फिर धूप, दीप और फूल चढ़ाएं। अब सच्चे दिल से भगवान की आरती उतारें।

देवशयनी एकादशी महत्व

सनातन धर्म में देवशयनी एकादशी को आषाढ़ी एकादशी भी कहा जाता है। इसके अलावा इस एकादशी को हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘देव’ और ‘शयन’। यहां देव शब्द का भगवान विष्णु के लिए उपयोग किया गया है और शयन शब्द का अर्थ है सोना। मान्यताओं के अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीरसागर में शयन के लिए चले जाते हैं। कहा जाता है कि जो जातक देवशयनी एकादशी का व्रत करते हैं उनके सारे दुख, दर्द दूर हो जाते हैं और उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

देवशयनी एकादशी कथा

पौराणिक कथा के मुताबिक, बहुत समय पहले मान्धाता नाम का एक राजा था। राजा काफी अच्छा और नेक दिल था जिस कारण उसकी प्रजा हमेशा उससे काफी खुश और सुखी रहती थी। एक बार, राज्य में 3 साल तक बारिश नहीं पड़ी। इससे राज्य में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गयी। जो प्रजा पहले खुश रहा करती थी वो अब निराश और दुखी रहने लग गई। अपनी प्रजा का ये हाल देखकर राजा ने अपनी प्रजा को इस दुःख से निकालने का उपाय निकालने के लिए जंगल में जाना उचित समझा। जंगल में जाते-जाते राजा अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंच गया। ऋषि ने राजा से उनकी परेशानी की वजह पूछी तो राजा से सारा दुःख ऋषि के सामने जाहिर कर दिया। तब ऋषि ने राजा को आषाढ़ी एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। ऋषि की बात मानकर राजा वापिस अपने राज्य लौट आया और अपनी प्रजा से इस व्रत को निष्ठापूर्ण करने की सलाह दी। व्रत और पूजा के प्रभाव का असर कुछ ऐसा हुआ कि राज्य में एक बार फिर से वर्षा हुई जिससे पूरा राज्य एक बार फिर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।

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