Shakambhari Navratri 2024 : शुरू हो गई है शाकंभरी नवरात्रि, जानिए पूजा विधि और व्रत का | Sanmarg

Shakambhari Navratri 2024 : शुरू हो गई है शाकंभरी नवरात्रि, जानिए पूजा विधि और व्रत का

कोलकाता : पौराणिक कथाओं के अनुसार, आदिशक्ति दुर्गा के कई अवतारों में से एक हैं देवी शांकभरी। मां दुर्गा के इस रूप की पूजा शाकंभरी नवरात्रि में होती है। माना जाता है कि दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य में मां शाकंभरी का वर्ण नील कहा गया है। मां के नेत्र नील कमल की तरह हैं और वे कमल के पुष्प पर विराजित होती हैं। मां की एक मुट्ठी में कमल का पुष्प है तो दूसरी मुट्ठी में बाण कहे जाते हैं। जानिए पौष माह में किस दिन से शाकंभरी नवरात्रि शुरू हो रही है।
शाकंभरी नवरात्रि की पूजा

पंचांग के अनुसार, शाकंभरी नवरात्रि पौष माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होकर पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन तक रहती है। इस साल अष्टमी तिथी का प्रारंभ 17 जनवरी दोपहर 1 बजकर 36 मिनट से शुरू हो चुकी है।
शाकंभरी नवरात्रि में सुबह स्नान पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं। इसके बाद पूजा सामग्री एकत्र की जाती है। पूजा सामग्री में मिश्री, मेवा, पूरी, हलवा और शाक सब्जियां आदि शामिल किए जाते हैं। माता की प्रतिमा को चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर रखा जाता है। इसके बाद माता पर गंगाजल छिड़ककर पूजा की जाती है। पूजा के बाद आरती होती है और माता के मंत्रों के जाप किया जाता है। शाकंभरी नवरात्रि के दिनों में रोजाना एक माला का जार करना बेहद शुभ कहा जाता है। भक्त इन दिनों में माता का ध्यान करते हैं।
शाकंभरी माता की आरती

जय जय शाकंभरी माता ब्रह्मा विष्णु शिव दाता
हम सब उतारे तेरी आरती री मैया हम सब उतारे तेरी आरती

संकट मोचनी जय शाकंभरी तेरा नाम सुना है
री मैया राजा ऋषियों पर जाता मेधा ऋषि भजे सुमाता
हम सब उतारे तेरी आरती

मांग सिंदूर विराजत मैया टीका सूब सजे है
सुंदर रूप भवन में लागे घंटा खूब बजे है
री मैया जहां भूमंडल जाता जय जय शाकम्भरी माता
हम सब उतारे तेरी आरती

क्रोधित होकर चली मात जब शुंभ- निशुंभ को मारा
महिषासुर की बांह पकड़ कर धरती पर दे मारा
री मैया मारकंडे विजय बताता पुष्पा ब्रह्मा बरसाता
हम सब उतारे तेरी आरती

चौसठ योगिनी मंगल गाने भैरव नाच दिखावे।
भीमा भ्रामरी और शताक्षी तांडव नाच सिखावें
री मैया रत्नों का हार मंगाता दुर्गे तेरी भेंट चढ़ाता
हम सब उतारे तेरी आरती

कोई भक्त कहीं ब्रह्माणी कोई कहे रुद्राणी
तीन लोक से सुना री मैया कहते कमला रानी
री मैया दुर्गे में आज मानता तेरा ही पुत्र कहाता हम सब उतारे तेरी आरती

सुंदर चोले भक्त पहनावे गले मे सोरण माला
शाकंभरी कोई दुर्गे कहता कोई कहता ज्वाला
री मैया मां से बच्चे का नाता ना ही कपूत निभाता
हम सब उतारे तेरी आरती

पांच कोस की खोल तुम्हारी शिवालिक की घाटी
बसी सहारनपुर मे मैय्या धन्य कर दी माटी
री मैय्या जंगल मे मंगल करती सबके भंडारे भरती
हम सब उतारे तेरी आरती

शाकंभरी मैया की आरती जो भी प्रेम से गावें
सुख संतति मिलती उसको नाना फल भी पावे
री मैया जो जो तेरी सेवा करता लक्ष्मी से पूरा भरता हम सब उतारे तेरी आरती ||

 

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