हवा में तैर रही महीन धूल (पीएम 2.5) की मात्रा 60 के बजाय 107 माइक्रोग्राम
हावड़ा : पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, तालाबों को अवैध रूप से भरने और घरों और बहुमंजिली इमारतों के निर्माण के कारण उत्तरी हावड़ा का एक विशाल क्षेत्र गंभीर रूप से प्रदूषित हो गया है। इसमें पीतल, कांसा, लोहा सहित विभिन्न कारखानों का जहरीला धुआं भी शामिल है।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा उपलब्ध कराए गए वायु सूचकांक आंकड़ों के अनुसार सलकिया, बांधाघाट, मालीपांचघड़ा और घुसुड़ी क्षेत्रों में हवा में तैरने वाली धूल की मात्रा सामान्य की तुलना में दोगुनी हो गई है। इस वजह से देखा जाता है कि बच्चे और बूढ़े लोग फेफड़ों की बीमारियों और सांस संबंधी समस्याओं से प्रभावित होते हैं। स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि कई घरों में बुजुर्गों के लिए 24 घंटे ऑक्सीजन सिलेंडर रखना पड़ रहा है। कई बच्चे अस्थमा और सर्दी से भी पीड़ित हैं। निवासियों ने शिकायत की कि हावड़ा नगर निगम ने धूल को दबाने के लिए कुछ दिनों तक सुबह स्प्रिंकलर से पानी का छिड़काव किया, लेकिन अब यह अनियमित हो गया है। उत्तर हावड़ा के अधिकांश क्षेत्र घनी आबादी वाले हैं। निवासियों ने शिकायत की कि चूंकि पिछले 5-6 वर्षों से हावड़ा नगर निगम में कोई निर्वाचित बोर्ड नहीं था और हावड़ा और बाली नगर पालिकाओं के विलय को लेकर हंगामा चल रहा था, इसलिए उत्तर हावड़ा में विकास कार्य उस तरह से नहीं हुआ। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार उत्तर हावड़ा के घुसुड़ी और आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण उस स्तर पर पहुंच गया है जो गंभीर चिंता का विषय है। हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 10) की मात्रा, जो 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के भीतर होनी चाहिए, दोगुनी से भी अधिक बढ़कर 219 हो गई है। तब हवा में तैर रही महीन धूल (पीएम 2.5) की मात्रा 60 माइक्रोग्राम के बजाय 107 माइक्रोग्राम है, जो लगभग दोगुनी है।
क्या कहना है अधिकारियों का : पर्यावरण कार्यकर्ता सुभाष दत्त ने कहा कि अगर आप उत्तरी हावड़ा के टीएल जयसवाल अस्पताल की छत पर जाएंगे, तो आपको आसपास की फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकलने वाला काला धुआं पूरे इलाके को कवर करते हुए दिखाई देगा। ऊपर से संकरी सड़कों पर वाहनों की धीमी गति, कुल मिलाकर उत्तर हावड़ा की हालत वाकई दयनीय है। हावड़ा निगम के अध्यक्ष डॉ. सुजय चक्रवर्ती भी उत्तर हावड़ा में धूल और धुएं से चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि हमारे स्प्रिंकल वाहन मुख्य रूप से प्रमुख सड़कों पर पानी उपलब्ध कराते हैं। इस बार से उत्तर हावड़ा की गलियों में भी पानी का छिड़काव जायेगा। मैंने इस बारे में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से चर्चा की है। उन्होंने कहा कि वे हमें छोटी स्प्रिंकलर कारें देंगे, लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ सड़कें धोने से वायु प्रदूषण को रोका जा सकता है? हालाँकि, इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला।