पुलिस और मजिस्ट्रेट की भूमिका से हाईकोर्ट नाखुश, कहा न्याय का माखौल उड़ाना है उसे जेल में बंद रखना : हाई कोर्ट
कोलकाता : संदेशखाली की बहुचर्चित नेता पियाली दास को हाई कोर्ट ने तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है। जस्टिस जय सेनगुप्त ने शुक्रवार को रिहाई का आदेश देते हुए कहा कि उसे जेल में बंद रखने का मतलब न्याय का माखौल उड़ाना है। जस्टिस सेनगुप्त ने इस मामले में पुलिस और मजिस्ट्रेट भूमिका की भी तीखी आलोचना की। उन्होंने इस मामले के आईओ को कोर्ट में तलब भी किया था। एसपी की मॉनिटरिंग में इस मामले की जांच की जाने का आदेश दिया है।
जस्टिस सेनगुप्त ने सीआरपीसी की धारा 195ए का हवाला देते हुए सवाल किया कि क्या इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी अनुपालन नहीं किया जाएगा। उन्होंने एजी किशोर दत्त की तरफ मुखातिब होते हुए कहा कि इस आदेश की कापी वितरित की जानी चाहिए। पुलिस ने पियाली दास के मामले में सीआरपीसी की इसी धारा का इस्तेमाल किया है जिस वजह से उसे काफी फटकार सुननी पड़ी। पियाली के खिलाफ सात मई को शिकायत हुई थी और नौ मई को उसके घर की दीवार पर पुलिस ने 41ए का नोटिस चिपका दिया था। इसके बाद जब वह बशीरहाट के एसीजेएम की अदालत में अग्रिम जमानत लेने गई तो उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर में 195ए भी जोड़ दिया गया। इस वजह से उसे एसीजेएम ने जेल हिरासत में भेज दिया।
जस्टिस सेनगुप्त ने पुलिस और सरकारी एडवोकेट से जानना चाहा कि यह धारा क्यों जोड़ी गई। पियाली की तरफ से बहस कर रहे एडवोकेट राजदीप मजुमदार की दलील थी कि जब मामला ट्रायल के स्टेज में हो और वहां कोई गवाह को धमकी देता है तो 195ए के तहत मुकदमा कायम किया जाता है। जस्टिस सेनगुप्त ने इससे हामी जताते हुए सवाल किया कि क्या एसीजेएम को इस बाबत सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जानकारी नहीं थी। एक मेकानिकल तरीके से क्यों काम किया गया। जस्टिस सेनगुप्त ने एजी से न्याय दिलाने में सहयोग की अपील करते हुए कहा कि वे 195ए के तहत दायर किए गए मामले को खारिज करते हैं। इसके साथ ही पियाली को पर्सनल बांड पर रिहा करने का आदेश दिया।