नई दिल्ली : भारत में पिछले काफी वक्त से ‘एक देश, एक चुनाव’ बार-बार, कई बार सुनाई देता रहा है, लेकिन बहुत-से लोग आज भी इसका अर्थ या कहें, इसके लागू होने की दिक्कतें या फायदों को नहीं समझ पाए हैं। आइए, ‘एक देश, एक चुनाव’ यानी One Nation, One Election यानी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के बारे में आपको विस्तार से समझाते हैं। जो लोग नहीं जानते, उनके लिए बता दें कि भारत में वर्ष 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही हुआ करते थे, लेकिन 1968 व 1969 में कुछ विधानसभाओं के वक्त से पहले भंग हो जाने और फिर 1970 के अंत में लोकसभा के भी समय से पहले भंग हो जाने के बाद राज्य विधानसभाओं तथा संसदीय चुनाव अलग-अलग करवाए जाने लगे थे।
अब समझिए क्या है मामला…?
इसके बाद वर्ष 1983 में केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह विचार पेश किया कि समूचे मुल्क में एक साथ चुनाव करवाए जाने की व्यवस्था की ओर लौटा जाना चाहिए। कुछ नहीं हुआ। फिर पिछली शताब्दी के अंतिम वर्ष में विधि आयोग की रिपोर्ट में भी इस विचार का जिक्र किया गया था, तभी कुछ नहीं हुआ। बस, इसके बाद वर्ष 2014 में आम चुनाव के वक्त भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में इसका जिक्र किया। फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2016 में इस विचार को एक बार फिर हवा दी। इसके बाद नीति आयोग और विधि आयोग ने इस मुद्दे पर कार्यपत्र प्रस्तुत किए, जिनसे जानकारी मिली कि ‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू करने के लिए संविधान में कम से कम चार जगह संशोधन करना होगा।
क्या होगा लागू होने पर…?
‘एक देश, एक चुनाव’ लागू हो जाने की स्थिति में संसदीय चुनाव, यानी लोकसभा चुनाव और सभी राज्यों की विधानसभाओं (विधानसभा वाले केंद्रशासित प्रदेशों में भी) में चुनाव एक साथ एक ही वक्त पर करवाए जाएंगे। इसके लिए कुछ विधानसभाओं को समय से पहले भंग करना पड़ सकता है, और कुछ का कार्यकाल बढ़ाना पड़ सकता है, जिसके लिए संविधान संशोधन करने होंगे।
उदाहरण के लिए, पिछले लोकसभा चुनाव (अप्रैल-मई, 2019) से छह महीने पहले और छह महीने बाद की अवधि में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे। सो, ऐसी स्थिति में 2018 के अंत या 2019 की शुरुआत में जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने थे, उनका कार्यकाल बढ़ाया जा सकता था, और जिन राज्यों में चुनाव लोकसभा चुनाव के कुछ महीने बाद हुए, उन्हें समय से पहले भंग किया जा सकता था।
‘एक देश, एक चुनाव’ से क्या हैं फायदे…?
सभी राज्यों और केंद्र में भी सरकारें हर वक्त चुनावी मोड में रहने के स्थान पर कामकाज पर ध्यान दे पाएंगी।
आम चुनाव और राज्यों में विधानसभा चुनाव एक साथ करवाए जाने से सरकारी खजाने पर पड़ने वाला बोझ काफी कम हो जाएगा।
विधि आयोग के अनुसार, देशभर में एक साथ चुनाव करवाए जाने से मतदाता प्रतिशत भी शर्तिया बढ़ेगा।
‘एक देश, एक चुनाव’ के खिलाफ क्या हैं तर्क…?
बार-बार (अलग-अलग वक्त पर) चुनाव होने से सरकारें तथा विधायक व सांसद हमेशा चौकन्ने रहते हैं, जबकि देशभर में एक ही साथ चुनाव होने की स्थिति में, यानी पांच साल बाद ही चुनाव होने की स्थिति में सरकार तथा जनप्रतिनिधि जनकल्याण के प्रति लापरवाह हो सकते हैं। राष्ट्रीय तथा राज्यीय चुनावी मुद्दे एक जैसे नहीं होते, इसलिए एक साथ चुनाव होने की स्थिति में मतदाता कन्फ्यूज हो सकता है।
जब तक ‘एक देश, एक चुनाव’ पूरी तरह लागू नहीं हो जाता, लोकसभा चुनाव के साथ ही चुनाव करवाने के लिए कई राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ सकता है, जिससे लोकतंत्र को झटका लगेगा।