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बाघों के भविष्य का फैसला अदालत में, कैसे कहां, जानें!

उच्च न्यायालय ने गोवा सरकार को अपने वन्यजीव अभयारण्यों के एक हिस्से को बाघ अभयारण्य घोषित करने का आदेश दिया था।

पणजी : उच्चतम न्यायालय की केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने प्रस्तावित गोवा बाघ अभयारण्य के पहले चरण में काली बाघ अभयारण्य के ‘कोर’ इलाके से सटे और अपेक्षाकृत कम आबादी वाले संरक्षित क्षेत्रों को शामिल करने की सिफारिश की है।

समिति ने न्यायालय को यह भी सिफारिश की है कि भगवान महावीर वन्यजीव अभयारण्य और महादेई वन्यजीव अभयारण्य के दक्षिणी भाग, जहां काफी अधिक संख्या में घर हैं, को अभयारण्य के पहले चरण में शामिल नहीं किया जाएगा। केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने 21 नवंबर को उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

समिति के दो सदस्यों चंद्र प्रकाश गोयल और सुनील लिमये ने गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) गोवा फाउंडेशन सहित सभी हितधारकों से मुलाकात की। एनजीओ ने उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें राज्य सरकार से इस क्षेत्र को बाघ अभयारण्य घोषित करने का आदेश देने का अनुरोध किया गया था। उच्च न्यायालय ने गोवा सरकार को अपने वन्यजीव अभयारण्यों के एक हिस्से को बाघ अभयारण्य घोषित करने का आदेश दिया था।

गोवा सरकार ने बाद में इस आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। सीईसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि राज्य के वे संरक्षित क्षेत्र जो काली टाइगर रिज़र्व (कर्नाटक) के ‘कोर’ से सीधे सटे हुए हैं और जहां अपेक्षाकृत कम घर हैं-अर्थात नेत्रावली वन्यजीव अभयारण्य (50 घर) और कोटिगांव वन्यजीव अभयारण्य (41 घर)-उन्हें प्रस्तावित गोवा बाघ अभयारण्य के पहले चरण में शामिल करने पर विचार किया जाना चाहिए।

‘पीटीआई’ के पास मौजूद रिपोर्ट की एक प्रति में कहा गया ‘काली ‘कोर’ क्षेत्र से उनकी पारिस्थितिक निकटता उन्हें परिदृश्य-स्तरीय संपर्क सुनिश्चित करने और बाघों के गोवा की ओर प्राकृतिक प्रसार को सक्षम बनाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है, और इसलिए ये दोनों प्रस्तावित बाघ अभयारण्य गोवा का हिस्सा होंगे।’

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