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परमाणु ऊर्जा संबंधी विधेयक का भाजपा ने 2008 में किया था विरोध, फिर आज क्यों ला रही है बिल: कांग्रेस

तिवारी ने कहा कि जुलाई 2005 में भारत अमेरिका परमाणु ऊर्जा करार की शुरुआत हुई और 10 अक्टूबर 2008 को दोनों देशों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर हुआ।

नई दिल्ली: कांग्रेस ने बुधवार को लोकसभा में आरोप लगाया कि वर्ष 2008 में जब ‘‘परमाणु रंगभेद की नीति’’ को खत्म करने का प्रयास जा रहा था तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाकर भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को पटरी से उतारने का प्रयास किया था।

मनीष तिवारी ने किया विरोध

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने परमाणु ऊर्जा संबंधी विधेयक का विरोध करते हुए यह भी कहा कि इसे विस्तृत विचार-विमर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाना चाहिए। तिवारी ने दावा किया कि ‘भारत के रुपांतरण के लिए नाभिकीय ऊर्जा का संधारणीय दोहन और अभिवर्द्धन (शांति) विधेयक, 2025’ में आपूर्तिकर्ता के उत्तरदायित्व का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए भारत के परमाणु उर्जा के इतिहास का उल्लेख किया तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू और होमी जहांगीर भाभा का स्मरण किया।

1970 के दशक में परमाणु परीक्षण से स्तिथि बदली

उन्होंने कहा कि 1970 के दशक में परमाणु परीक्षण, बांग्लादेश की मुक्ति और सिक्किम का भारत के साथ एकीकरण के माध्यम से इंदिरा गांधी ने दक्षिण एशिया के भूरानीतिक परिदृश्य को बदल दिया। तिवारी ने कहा कि जुलाई 2005 में भारत अमेरिका परमाणु ऊर्जा करार की शुरुआत हुई और 10 अक्टूबर 2008 को दोनों देशों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर हुआ।

कॉरपोरेट समूह के लिए परमाणु विधेयक

कांग्रेस सांसद ने कहा, ‘‘2008 में जब भारत के खिलाफ परमाणु रंगभेद की नीति को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा था, तो (तत्कालीन संप्रग) सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। यह अलग मामला है कि यह अविश्वास प्रस्ताव पारित नहीं हुआ। तिवारी ने आरोप लगाया, ‘‘आप लोग भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम को पटरी से उतारना चाहते थे और यह सब राजनीतिक कारणों से किया गया।’’ उन्होंने कहा कि जब एक कॉरपोरेट समूह ने परमाणु उर्जा के क्षेत्र में उतरने का फैसला किया तो उसके कुछ समय बाद यह विधेयक लाया गया। उन्होंने कहा, ‘‘क्या यह इत्तेफाक है?’’

ऊर्जा राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने आरोपों को किया खारिज

इस पर, परमाणु ऊर्जा राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने इसे खारिज करते हुए कहा कि यह पूरी तरह से राजनीतिक आरोप है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में एक भी ऐसा खंड और शब्द नहीं है जिसमें आपूर्तिकर्ता के उत्तरदायित्व का कोई उल्लेख हो। तिवारी ने सवाल किया, ‘‘ईश्वर न करे कि कोई अनहोनी हो जाए, तो फिर क्या होगा?’’

उन्होंने मांग की कि सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि आपूर्तिकर्ता के उत्तरदायित्व संबंधी खंड हटाने से क्या फायदा होगा। तिवारी ने कहा, ‘‘मेरी समझ से इससे नुकसान होगा।’’ उन्होंने कहा कि इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जाए, ताकि इस पर गहन विचार-विमर्श किया जा सके।

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