अलीपुरदुआर

सदियों से मां के रूप में पूजी जाती है तीस्ता

इस पूजा में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं राजबंशी और मेचेनी संप्रदाय के लोग

15 दिन करते हैं शाकाहारी भोजन

जलपाईगुड़ी : राजबंशी और मेचेनी संप्रदाय को लोग सदियों से तीस्ता को बुड़ीर मां के रूप में पूजते आ रहे हैं। इस पूजा में इन दोनों संप्रदाय के लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इनका मानना है कि पूजा से तीस्ता शांत होती है और इसके विकराल रूप से मुक्ति मिलती है। हर साल यह पूजा बैशाख महीने के 15वें दिन बाद शुरू होती है। यह पूजा आमतौर पर मंगलवार और शनिवार को की जाती है।

राजबंशी और मेचेनी समुदाय के लोग, जो मुख्य रूप से तीस्ता नदी से नीचे आने वाली वस्तुओं, जलीय जीवन और कृषि पर निर्भर हैं, इस पूजा से जुड़े हुए हैं। यद्यपि समय के साथ पूजा की शैली बदल गई है, परंतु नियम वही हैं।

जलपाईगुड़ी शहर के भातखाना इलाके की बुजुर्ग निवासी सरदाबाला बसाक 75 वर्षों से तीस्ता की पूजा करती आ रही हैं। उनके शब्दों में पहले इस इलाके की तस्वीर कुछ और थी। तीस्ता शहर के पास थी। हमारा जीवन और आजीविका इसी नदी पर निर्भर थी और मानसून के दिनों में इस नदी का विकराल रूप बहुत कुछ हमसे छीन लेता था। इस नदी को शांत रखने के लिए हम तीस्ता को माँ के रूप में पूजते हैं। इसीलिए इसे तीस्ता बुड़ी पूजा कहते हैं।

पचपन वर्षीय प्रमिला देबनाथ ने कहा, हम इस पूजा के नियम बैशाख के पहले दिन से ही शुरू कर देते हैं। हम घर-घर जाकर दान-चंदा इकट्ठा करते हैं और शनिवार या मंगलवार को पूजा करते हैं। नियमों का पालन करने वालों को इन पंद्रह से सत्रह दिनों तक शाकाहारी भोजन करना होता है।

इस मौके पर गीत और नृत्य होते रहता है। स्थानीय लोग भी इस उत्सव में शामिल होते हैं। राजबंशी परिवार का जीवन तीस्ता से जुड़ा हुआ है। बरसात के मौसम में तूफानी लहरों के कारण नदी अपने किनारों से बाहर बहने लगती है। इसलिए राजबंशी समुदाय के लोगों ने कहा कि यह पूजा उनकी भूमि की रक्षा और मानसून से पहले तीस्ता को शांत रखने के लिए आयोजित की जाती है।

भटखाना निवासी पच्चीस वर्षीय अलका रॉय कई पीढ़ियों से इस पूजा का आयोजन करती आ रही हैं। उनके शब्दों में, बरसात के मौसम में नदी का जलस्तर वैसा ही रहता है। सूखे के मौसम में पानी का प्रवाह कम हो जाता है, जिससे खेत सूख जाते हैं, पानी के लिए हाहाकार मच जाता है और खेती में दिक्कतें आती हैं। इस क्षेत्र की आजीविका बाधित होती है। प्रकृति की इस अनिश्चितता से बचने के लिए हम नदी पूजा करते हैं। हम लाल किनारे वाली या केसरिया किनारे वाली सफेद साड़ी पहनते हैं और अपने सिर पर तीस्ता बुड़ी के लिए चढ़ावा लेकर चलते हैं।

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