प्रयागराज : भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने शनिवार को कहा कि देश पर जब भी संकट आया उसने मजबूती और एकजुटता के साथ उसका सामना किया और इसका 'श्रेय संविधान को दिया जाना चाहिए’।
यहां इलाहाबाद हाई कोर्ट में 680 करोड़ रुपये की लागत से नवनिर्मित अधिवक्ता चैंबर भवन और मल्टी लेवल पार्किंग का उद्घाटन करने के बाद कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गवई ने कहा कि न्यायपालिका का मौलिक कर्तव्य देश के उस आखिरी नागरिक तक पहुंचना है जिसे न्याय की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि विधायिका और कार्यपालिका का भी यही कर्तव्य है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, जब भी संकट आया, भारत एकजुट और मजबूत रहा। इसका श्रेय संविधान को दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, भारतीय संविधान लागू होने की 75 वर्ष की यात्रा में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका ने सामाजिक और आर्थिक समानता लाने में बड़ा योगदान दिया है। कई ऐसे कानून लाए गए जिसमें जमीदार से जमीन लेकर भूमिहीन व्यक्तियों को दी गई।
उन्होंने कहा, समय समय पर इन कानूनों को चुनौती दी गई। 1973 से पहले सुप्रीम कोर्ट का विचार था नीति निर्देशक सिद्धांत (डायरेक्टिव प्रिंसिपल) और मौलिक अधिकारों के बीच टकराव की स्थिति बनेगी तो मौलिक अधिकार ऊपर होगा।
गवई ने कहा, 973 में 13 न्यायाधीशों का निर्णय आया कि संसद को संविधान में संशोधन का अधिकार है और इसके लिए वह मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है, लेकिन उसके पास संविधान के मूल ढांचे में बदलाव करने का अधिकार नहीं है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इस पीठ ने यह भी कहा था कि मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक सिद्धांत दोनों ही संविधान की आत्मा हैं। ये दोनों संविधान के स्वर्ण रथ के दो पहिए हैं जिसमें से यदि एक पहिया रोको तो पूरा रथ रुक जाएगा।
उन्होंने कहा, मैं हमेशा कहता रहा हूं कि बार और बेंच एक सिक्के के दो पहलू हैं। जब तक बार और बेंच साथ मिलकर काम नहीं करते तब तक न्याय के रथ को आगे नहीं बढ़ा सकते। आज इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पूरे देश के लिए एक अच्छा आदर्श दिया है जिसमें बार के लिए (परिसर निर्माण हेतु) न्यायाधीशों ने 12 बंगले खाली कर दिए और अपने वकील भाइयों की सुविधा का ध्यान रखा।