बापन दास ने मानवता की दीवार से दिया बुजुर्ग महिला को कंबल  
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सड़कों पर 'मानवता की दीवार': पुलिसकर्मी बापन दास की पहल ने बेसहारा लोगों को दी ठंड से सुरक्षा

निधि, सन्मार्ग संवाददाता

कोलकाता: कोलकाता अपनी संस्कृति और आत्मीयता के लिए जानी जाती है। इस कड़ाके की ठंड में, जहाँ संपन्न लोग अपने घरों में हीटर और रजाई का आनंद ले रहे हैं, वहीं शहर की फुटपाथों पर रहने वाले हजारों बेसहारा लोग खुले आसमान के नीचे ठिठुरने को मजबूर हैं। इन लाचार लोगों की पीड़ा को समझते हुए, एक पुलिसकर्मी ने एक ऐसी अनूठी पहल शुरू की है जिसकी चर्चा आज पूरे शहर में हो रही है। बरानगर मेट्रो स्टेशन और विधाननगर स्टेशन के पास खड़ी एक बेजान दीवार आज 'मानवता की दीवार' बनकर हजारों चेहरों पर मुस्कान बिखेर रही है।

एक पुलिसकर्मी की संवेदनशीलता

इस सराहनीय पहल के सूत्रधार हैं बापन दास, जो पेशे से एक पुलिसकर्मी हैं। पुलिस की छवि अक्सर सख्त और अनुशासन प्रिय मानी जाती है, लेकिन बापन दास ने अपनी वर्दी के पीछे छिपे एक कोमल और संवेदनशील इंसान का परिचय दिया है। ड्यूटी के दौरान उन्होंने अक्सर देखा कि स्टेशन के पास और फुटपाथ पर रहने वाले बुजुर्ग और मासूम बच्चे ठंड से कांपते रहते हैं। उनके पास शरीर ढकने के लिए पर्याप्त कपड़े तक नहीं होते। इस हृदयविदारक दृश्य ने उन्हें कुछ ऐसा करने के लिए प्रेरित किया जो केवल सरकारी आदेशों तक सीमित न हो।

क्या है 'मानवता की दीवार'?

बापन दास ने डनलप-बरानगर मेट्रो स्टेशन और विधाननगर के पास एक सार्वजनिक दीवार को 'मानवता की दीवार' में बदल दिया है। इस दीवार की खासियत यह है कि यहाँ कई कीलें और हैंगर लगाए गए हैं, जहाँ विभिन्न प्रकार के गर्म कपड़े जैसे स्वेटर, जैकेट, मफलर, शॉल और कंबल लटकाए जाते हैं।

इस व्यवस्था का नियम बेहद सरल और सम्मानजनक है:

  1. "जिसे जरूरत है, वह यहाँ से ले जाए।"

  2. "जिसके पास अधिक है, वह यहाँ छोड़ जाए।"

इस पहल की सबसे बड़ी खूबी यह है कि किसी भी जरूरतमंद को मदद मांगने के लिए हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती। वे अपनी पसंद और साइज के हिसाब से कपड़े खुद चुन सकते हैं, जिससे उनका आत्मसम्मान भी बना रहता है।

बरानगर मेट्रो स्टेशन के निकट मानवता की दीवार पर लोगों को मदद स्वरूप गर्म कपड़े देने की अपील करते पुलिस कर्मी बापन दास

समाज की भागीदारी और बच्चों के लिए विशेष इंतजाम

बापन दास ने केवल खुद ही कपड़े नहीं जुटाए, बल्कि उन्होंने समाज के हर वर्ग से इसमें जुड़ने की अपील की है। उन्होंने लोगों से आग्रह किया है कि जिन घरों में पुराने कपड़े अलमारियों में बेकार पड़े हैं या जो कपड़े अब छोटे हो गए हैं, उन्हें फेंकने के बजाय इस दीवार पर टांग दें।

उनके इस आह्वान का व्यापक असर देखने को मिला है। स्थानीय निवासियों से लेकर दफ्तर जाने वाले बाबू तक, हर कोई अपनी क्षमतानुसार योगदान दे रहा है। विशेष रूप से छोटे बच्चों के लिए यहाँ अलग से रंग-बिरंगे गर्म कपड़े रखे गए हैं, क्योंकि ठंड का सबसे घातक असर कुपोषित और गरीब बच्चों पर ही पड़ता है।

सोशल मीडिया पर सराहना की लहर

जब से इस पहल की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई हैं, लोग बापन दास की तुलना 'असली हीरो' से कर रहे हैं। अक्सर पुलिस और जनता के बीच विरोध या तनाव की खबरें आती हैं, लेकिन बापन दास के इस कार्य ने पुलिस विभाग की गरिमा को एक नए शिखर पर पहुँचाया है। लोगों का कहना है कि यदि हर क्षेत्र में एक 'बापन दास' हो, तो समाज से अभाव और पीड़ा को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

मानवीयता की गर्मजोशी

आज 'मानवता की दीवार' केवल ईंट और पत्थर का ढांचा नहीं, बल्कि सहानुभूति और सेवा की एक ऐसी मशाल बन गई है जो कोलकाता की सर्द रातों में बेसहारा लोगों को उम्मीद की गरमाहट दे रही है। यह दीवार हमें याद दिलाती है कि एक छोटा सा नेक कदम भी समाज में बड़ा बदलाव ला सकता है।

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