कवि विनोद कुमार शुक्ल 
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59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे जायेंगे कवि विनोद कुमार शुक्ल

ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले हिंदी के 12वें साहित्यकार

नयी दिल्ली : प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को वर्ष 2024 के लिए 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किये जाने की घोषणा की गयी है। वे हिंदी के 12वें साहित्यकार हैं, जिन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है।

सृजनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली के लिए सम्मानित

भारतीय ज्ञानपीठ ने शनिवार को बताया कि शुक्ल को हिंदी साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान, सृजनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली के लिए इस सम्मान के लिए चुना गया है। शुक्ल छत्तीसगढ़ राज्य के ऐसे पहले लेखक हैं, जिन्हें इस सम्मान से नवाजा जायेगा। प्रसिद्ध कथाकार एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रतिभा राय की अध्यक्षता में हुई प्रवर परिषद की बैठक में यह निर्णय लिया गया।

चयन समिति के सदस्यों में शामिल थे

बैठक में चयन समिति के अन्य सदस्य के रूप में माधव कौशिक, दामोदर मावजो, प्रभा वर्मा और डॉ. अनामिका, डॉ ए कृष्णा राव, प्रफुल्ल शिलेदार, जानकी प्रसाद शर्मा और ज्ञानपीठ के निदेशक मधुसूदन आनंद शामिल थे। लेखक, कवि और उपन्यासकार शुक्ल (88 वर्ष) की पहली कविता 1971 में ‘लगभग जयहिंद’ शीर्षक से प्रकाशित हुई थी। उनके मुख्य उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ शामिल हैं। उनका लेखन सरल भाषा, गहरी संवेदनशीलता और अद्वितीय शैली के लिये जाना जाता है।

प्रयोगधर्मी लेखन के लिए प्रसिद्ध

वे मुख्य रूप से हिंदी साहित्य में अपने प्रयोगधर्मी लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं। शुक्ल को साहित्य अकादमी पुरस्कार और अन्य प्रतिष्ठित सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है। ज्ञानपीठ पुरस्कार देश का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है, जिसे भारतीय भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्य रचने वाले रचनाकारों को प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार के तहत 11 लाख रुपये की राशि, वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।

मुझे कभी नहीं लगा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार मुझे मिलेगा : शुक्ल

रायपुर से मिली रिपोर्ट के अनुसार शुक्ल ने ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने की घोषणा पर खुशी जताते हुए कहा कि उन्हें कभी नहीं लगा कि यह पुरस्कार मिलेगा। यह पूछे जाने पर कि ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने की घोषणा को वह किस रूप में लेते हैं तो शुक्ल ने कहा कि यह भारत का, साहित्य का एक बहुत बड़ा पुरस्कार है। इतना बड़ा पुरस्कार मिलना यह मेरे लिए खुशी की बात है। उन्होंने संवाद एजेंसी से बातचीत में यह भी कहा कि पुरस्कार की तरफ मेरा ध्यान जाता ही नहीं। दूसरे मेरा ध्यान दिलाते हैं। दूसरे मुझसे कहते हैं, परिचर्चा में, बातचीत में, कि अब आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलना चाहिए, मैं उनको संकोच में जवाब दे नहीं पाता।

अस्वस्थता के बावजूद लगातार लिख रहे

शुक्ल (88 वर्ष) पिछले कुछ समय से आयु संबंधी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं लेकिन वे लगातार लिख रहे हैं। शुक्ल कहते हैं कि कुछ ना कुछ लिखने का प्रयास मैं करता हूं और लिख लेता हूं। जब लिखा हुआ छप जाता है तो मैं मुक्त हो जाता हूं, और मुझे ज्यादा लिखने का जैसे कर्ज सा चढ़ जाता है और फिर मैं फिर लिखने के काम में लग जाता हूं। जब तक रचना शक्ति नहीं है तब तक मुझे एक आलस सा आता है, अभी तो छापने के लिए भेज दिया है छप जाए तो तो फिर लिखूं। लिखने को बहुत है इसका अंत नहीं।

‘दिनभर हूं, रात भर सोचता रहता हूं’

वे कहते हैं कि मैं सोचता तो दिनभर हूं, रात भर सोचता रहता हूं। अब लेटे रहने की जिंदगी ज्यादा है। ज्यादा कोई ख्याल आता है, लिखने के लिए अभिव्यक्ति के लिए, एक कोई बात सी लगती है तब अपने पास में रखे हुए डायरी पर उसे नोट कर लेता हूं और दूसरे दिन या तीसरे दिन उसे पूरा करने की कोशिश करता हूं। ज्यादा समय साहित्य के छात्रों के बीच में बीतता है। उनके प्रश्न के उत्तर आदि लिखने के बारे में, वह भी मुझे ताकत देता है। ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ जैसे प्रसिद्ध उपन्यास के लेखक शुक्ल इन दिनों बच्चों के लिए लिख रहे हैं। वे कहते हैं कि बच्चों के लिए रचनाएं लिखना उन्हें अच्छा लगता है।

‘बहुत बड़ा लिखने की अब मेरी हिम्मत नहीं होती’

शुक्ल कहते हैं कि बहुत बड़ा लिखने की अब मेरी हिम्मत नहीं होती है। मुझे लगता है कि जो भी काम करूं इस उम्र में पूरा कर लूं। बच्चों के लिए छोटा-छोटा लिखता हूं और मुझे आसान सा आधार मिल गया है कि मैं इस तरह के छोटे-छोटे काम करता रहूं। बच्चों के लिए लिखना मुझे बड़ा अच्छा लगता है। ‘पेन—नोबोकोव अवार्ड’ जैसे पुरस्कारों से सम्मानित शुक्ल नये और युवा साहित्यकारों को कहते हैं कि वे लिखते रहें और खुद पर विश्वास रखें। उन्होंने कहा कि जो लिख रहे हैं वह बहुत अच्छा काम है। लिखने का काम छोटा नहीं है। लिखे तो लिखते रहें। अपने ऊपर विश्वास रखें और दूसरे आपके लेखन के बाद टिप्पणियां देते हैं तो उसपर भी ध्यान दें। उनकी टिप्पणियों पर भी ध्यान दें और जरूर इस बात का अनुभव करें कि जो आप लिख रहे हैं उसकी सार्थकता कितनी है।

बचपन मुक्तिबोध के शहर राजनांदगांव में बीता

शुक्ल का बचपन गजानन माधव मुक्तिबोध और पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जैसे साहित्यकारों के शहर राजनांदगांव में बीता है। अपने शहर को याद करते हुए शुक्ल कहते हैं कि 'राजनांदगांव की बहुत याद आती है। उसे मैं अपने बचपन के दिन के रूप में याद करता हूं लेकिन अब यह वह राजनांदगांव नहीं रहा। वहां मैं कई साल पहले गया था। मेरा घर भी अब वह घर नहीं जो पहले था। अब जगह इतनी बदल जाती है।

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