कोलकाता: पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने 2026 विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में संभावित ‘अशांति’ और बड़े पैमाने पर घुसपैठ को लेकर गंभीर चिंता जताई है। पार्टी का कहना है कि जिस तरह बांग्लादेश में हाल ही में हुए ‘जुलाई आंदोलन’ ने राजनीतिक परिदृश्य बदल दिया और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा, उसी तरह बंगाल में भी चुनावी साल में अस्थिरता फैलाने की नापाक कोशिश हो सकती है।
बांग्लादेश में कुछ होती है तो बंगाल में भूचाल आ जाता है
पार्टी सूत्रों के अनुसार, संसद के मानसून सत्र के दौरान टीएमसी के शीर्ष नेताओं ने सांसदों और सहयोगियों के साथ एक आंतरिक बैठक की। बाद में उन्होंने अपने विचार कुछ पत्रकारों के साथ साझा किये। इस बैठक में साझा की गई खुफिया जानकारी के अनुसार, ढाका की उथल-पुथल के समय बंगाल में भी 10-12 दिनों के लिए छोटा लेकिन अहम हलचल महसूस की गई थी। दोनों बंगाल (पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश) सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जैसे विभिन्न पहलुओं में एक दूसरे से अच्छी तरह से जुड़े हुए थे। यही कारण है कि जब बांग्लादेश में अवांछित कुछ होती है तो पश्चिम बंगाल में भूचाल आ जाता है। टीएमसी हाईकमान का मानना है कि विधानसभा चुनाव से पहले इस तरह की घटनाओं को बड़े पैमाने पर अंजाम दिया जा सकता है। टीएमसी ने स्पष्ट आरोप लगाया है कि सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) पूरी तरह विफल रहा है और राज्य में घुसपैठ रोकने में नाकाम रही है। पार्टी ने अपने कैडर और नेताओं को चेतावनी दी है कि घुसपैठ हर हाल में रोकनी होगी, जो करना है करो। इसके साथ ही चुनाव से पहले किसी भी संभावित विद्रोह और अशांति को काउंटर करने के लिए पार्टी एक विस्तृत ब्लूप्रिंट पर काम कर रही है।
केंद्र-राज्य टकराव की उम्मीद
यह मुद्दा अब सिर्फ सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि केंद्र-राज्य टकराव का नया अध्याय भी बनता दिख रहा है। टीएमसी जहां बीएसएफ की असफलता को केंद्र सरकार की नाकामी बता रही है, वहीं भाजपा पलटवार कर सकती है कि राज्य सरकार अपनी कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी से बच रही है। विश्लेषकों का मानना है कि 2026 का चुनाव केवल विकास और शासन के मुद्दों पर नहीं, बल्कि सुरक्षा, सीमा प्रबंधन और संघीय टकराव के इर्द-गिर्द भी लड़ा जाएगा।