टॉप न्यूज़

Oscar में पहुंची फिल्म, काम के लिए जीता नेशनल अवॉर्ड, पर अब चला रहा है ऑटो, जाने चापू की अनकही कहानी

जानिए शफीक सैयद की अनसुनी कहानी

नई दिल्ली - दुनिया भर में फिल्मों को मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण माध्यम माना जाता है। विभिन्न शैलियों की फिल्में रिलीज होती हैं, जहां कुछ लोग सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्मों को पसंद करते हैं, तो कुछ रोमांस, थ्रिलर या एक्शन फिल्मों के दीवाने होते हैं। कुछ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन करती हैं, जबकि कुछ समीक्षकों की पसंद बन जाती हैं।

आज हम एक ऐसी फिल्म की चर्चा करेंगे, जिसे मीरा नायर ने निर्देशित किया था और जो 1988 में रिलीज हुई थी। यह फिल्म व्यावसायिक रूप से बहुत सफल नहीं रही और न ही रिलीज के समय इसे ज्यादा चर्चा मिली। हालांकि, वर्षों बाद इसे कल्ट सिनेमा का दर्जा प्राप्त हुआ। फिल्म की कहानी एक छोटे बच्चे के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसने समय के साथ सिनेमा प्रेमियों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। 

क्या था फिल्म में ?

इस फिल्म का मुख्य किरदार एक 12 साल का बच्चा था, जिसने इस फिल्म में बेहद अहम भूमिका निभाई थी। उसके शानदार अभिनय के लिए उसे बेस्ट चाइल्ड आर्टिस्ट कैटेगरी में नेशनल फिल्म अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। आप सोच रहे होंगे कि यह बाल कलाकार अब तक एक बड़ा सितारा बन चुका होगा और सफलता की ऊंचाइयों को छू रहा होगा, लेकिन इसकी जिंदगी ने बिल्कुल विपरीत मोड़ लिया। बीते वर्षों में उसका सफर कुछ खास अच्छा नहीं रहा।

शफीफ सैयद ने निभाई थी फिल्म में अहम भूमिका

हम बात कर रहे हैं शफीक सैयद की, जिन्होंने महज 12 साल की उम्र में सिनेमा की दुनिया में कदम रखा था। 1988 में रिलीज हुई फिल्म 'सलाम बॉम्बे' में उन्होंने अपनी अदाकारी से हर किसी को प्रभावित किया। इस फिल्म में नाना पाटेकर, रघुवीर यादव, इरफान खान और अनीता कंवर जैसे अनुभवी कलाकार थे, लेकिन इसके बावजूद शफीक ने अपनी अलग पहचान बनाई। फिल्म की पूरी कहानी उन्हीं के किरदार के इर्द-गिर्द घूमती थी। हालांकि, बॉलीवुड में अपनी शुरुआत के बाद अब शफीक फिल्म इंडस्ट्री से पूरी तरह दूर हो चुके हैं।

कैसे मिला फिल्म में काम करने का मौका ?

सलाम बॉम्बे को भारत की तरफ से ऑस्कर के लिए नॉमिनेट किया गया था। इस फिल्म का मुख्य आकर्षण शफीफ सैयद थे। उन्हें सलाम बॉम्बे में मुख्य भूमिका में देखा गया था। सलाम बॉम्बे के बाद शफीफ दोबारा कुछ ‌दिन बाद मीरा नायर की एक और फिल्म 'पतंग' में नजर आए थे। पतंग 1994 में रिलीज हुई थी। पतंग आने के बाद उन्हें कोई काम नहीं मिल रहा था। इस वजह से वह वापस अपने शहर बैंगलोर लौट आए।

आपको बता दें कि शफीफ सैयद का पालन पोषण बैंगलोर की झुग्गियों में हुआ था। वह अपने दोस्तों के साथ घर से भागकर मुंबई आए थे। मुंबई आने के बाद उनके पास रहने की कोई जगह नहीं थी। इस वजह से वह चर्चगेट रेलवे स्टेशन के पास फुटपाथ पर रहते थे। सबसे पहली बार मीरा नायर की नजर उन पर वहीं पड़ी जिसके बाद उन्होंने फिल्म में काम करने की बात शफीफ से की। शफीफ आराम से इस फिल्म को करने के लिए तैयार हो गए थे। इसके लिए फीस के तौर पर हर दिन उन्हें 20 रुपये दिए जाते थे। इसके साथ ही मीरा उन्हें लंच भी कराती थी।

अब क्या करते हैं शफीफ ?

'स्लमडॉग मिलियनेयर' जब भारत में काफी चर्चा में आई तो लोगों को ‘सलाम बॉम्बे’ के बारे में याद आया। इसके साथ ही चापू का काम लोगों ने देखा और वह सबका फेवरेट बन गया। इस किरदार को शफीफ ने ही निभाया था। जब लोगों ने उनके बारे में पता लगाने की कोशिश की तो सामने आया कि शफीफ दैनिक खर्च चलाने के लिए बैंगलोर में ऑटो चला रहे थे। आज भी वह ऑटो चलाते हैं। एक पुराने इंटरव्यू में शफीक सैयद ने ऑटो चलाने को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था, 'मुझे परिवार का ख्याल रखना था। 1987 में मेरे पास ऐसी कोई जिम्मेदारी नहीं थी।' शफीक सैयद शादीशुदा हैं और अपनी पत्नी, मां और तीन बेटों और एक बेटी के साथ बैंगलोर से 30 किलोमीटर दूर एक कस्बे में रहते हैं। वह अभी भी सफलता की तलाश में हैं।

SCROLL FOR NEXT