मुनमुन, सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : हाथों से बुने गए ऊनी परिधान अब गुजरे जमाने की बात बन गए हैं। उनमें किए जाने वाले कसीदे की बस गाहेबगाहे चर्चा भर हो जाती है। मशीन से बने ऊनी परिधानों ने अब अपनी बढ़त बना ली है। मशीनों के सामने बेबश हो गई है अंगुलियों की कला। इसके अलावा सहज सुलभ फैशनेबल जैकेटों ने अपना स्थान बना लिया है। रेडीमेड कपड़ों की कम कीमत, विविध डिजाइन, आधुनिक फैशन-ट्रेंड और सहज उपलब्धता कारक उपभोक्ताओं को भाने लगा है। इसके अलावा कम बजट का सवाल भी है।
50–60% तक घटा व्यापार
बड़ाबाजार स्थित ऊन दुकानदार लखन दत्ता ने सन्मार्ग को बताया कि 15–20 साल पहले एक सीजन में बंडल के बंडल ऊन बिक जाया करते थे। ठंड शुरू होने से पहले ही खुदरा दुकानदारों की लंबी कतार दुकान के बाहर लग जाती थी। लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल गए हैं। बिक्री कई गुणा घट चुकी है, वर्तमान में व्यापार लगभग 50–60% तक नीचे आ गया है। वहीं बिमल साह ने कहा कि लोग अब रेडीमेड स्वेटर और चिटर/जैकेट्स को प्राथमिकता देते हैं। ये सस्ते, आकर्षक और संभालने में आसान होते हैं। उनका कहना है कि अगर यही स्थिति बनी रही, तो वह दिन दूर नहीं जब ऊन बनाने वाले कल-कारखाने बंद होने के कगार पर पहुंच जाएंगे।
कोलकाता का पारंपरिक ऊनी बाजार संकट में
कोलकाता में आज भी बड़ाबाजार, न्यू मार्केट, पार्क स्ट्रीट और टालीगंज जैसे क्षेत्रों में ऊन, ऊनी परिधानों, धागों और बुनाई से जुड़ी कई पुरानी दुकानें मौजूद हैं। थोक व्यापारी अब भी स्वेटर, कंबल और अन्य ऊनी वस्त्र बेचते हैं, लेकिन पहले जैसी रौनक अब इन बाजारों में नही ंरह गई है। ग्राहकों का रुझान फैक्ट्री में बने स्वेटर और जैकेटों की ओर तेजी से बढ़ रहा है। उनकी कम कीमत और रंग-बिरंगे डिजायन बर्बस अपनी तरफ खींचते हैं।
ऊनी कारीगरी पर मंडराता संकट
अगर हालात यूं ही बने रहे, तो आने वाले कुछ वर्षों में हाथ की ऊनी बुनाई के परंपरा पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। कारीगरों की नयी पीढ़ी या तो इस पेशे से दूर हो रही है या दूसरे कामों की ओर बढ़ रही है। हाथ की बुनाई की खूबसूरती, पारंपरिक डिजाइनों की खासियत और स्थानीय हस्तकला की पहचान धीरे-धीरे धुंधला रही है। हाथ से बुने ऊन सिर्फ कपड़ा नहीं, एक ऐसा शिल्प था जिसमें धागों की बनावट, रंग, पैटर्न, नाप-जोड़ और कारीगर की मेहनत सबकी अपनी अलग कला होती थी।