सन्मार्ग संवाददाता
नयी दिल्ली/कोलकाता : सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय करोल ने डीए मामले की सुनवायी करते हुए कहा कि जितना डीए दे सकते हैं कृपया दीजिए। राज्य सरकार की तरफ से पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल से कहा कि आप अपने मुवक्किल, यानी राज्य, को समझाइए। जस्टिस करोल के साथ ही जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्र भी इस मामले की सुनवायी कर रहे हैं। इसकी सुनवायी मंगलवार को अधूरी रह गई। लिहाजा बुधवार को भी इसकी सुनवायी होगी। पश्चिम बंगाल के सरकारी कर्मचारियों के संगठनों ने बकाया डीए के भुगतान के लिए मामला दायर कर रखा है।
राज्य सरकार की तरफ से पैरवी कर रहे एडवोकेट सिब्बल ने राज्य सरकार की वित्तीय हालत का ब्यौरा देते हुए कहा कि वह इतना बड़ा आर्थिक बोझ नहीं सह पाएगी। एडवोकेट अमृता पांडे ने यह जानकारी देते हुए बताया कि एडवोकेट सिब्बल की दलील थी कि राज्य को कोविड के दौर से गुजरना पड़ा है। मनरेगा का पैसा केंद्र नहीं दे रहा है इसलिए राज्य सरकार को ही यह बोझ उठाना पड़ रहा है। अगर राज्य सरकार रिजर्व बैंक से लोन लेती है तो बैंक उसकी क्रेडिब्लिटी पर विचार करेगा। इसके बाद भी बहुत सारी औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ेगी। इस मामले की सुनवायी के दौरान एक फिर यह सवाल उठा कि क्या डीए पाना सरकार के कर्मचारियों के बुनियादी अधिकार में शामिल है। जस्टिस प्रशांत मिश्र ने सुनवायी के आखिर में याद दिलाया कि इस मामले के फैसले का राष्ट्रव्यापी असर पड़ेगा। जो राज्य ऑल इंडिया कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स को नहीं मानते हैं उन पर भी इसका असर पड़ेगा। यहां गौरतलब है कि केंद्र सरकार इसी इंडेक्स के आधार पर डीए का भुगतान करती है। बहरहाल मंगलवार को सुनवायी अधूरी रह गई, लिहाजा बुधवार को भी जारी रहेगी।