कोलकाता: उत्तर बंगाल के चाय बागान अब सौर ऊर्जा (सोलर एनर्जी) की रोशनी जगमगाएंगे। राज्य के गैर-पारंपरिक और नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन विभाग (एनआरईएस) ने ‘एग्री-पीवी’ यानी एग्रीकल्चरल फोटोवोल्टैक्स तकनीक को अपनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इसका उद्देश्य चाय बागानों में लगातार और स्वच्छ ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित करना है, ताकि डीजल और कोयले जैसे प्रदूषणकारी ईंधनों पर निर्भरता घटे। राज्य के ऊर्जा मंत्री गोलाम रब्बानी, विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव बरुण कुमार राय और अन्य अधिकारियों ने टेरी (ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान) के विशेषज्ञों के साथ सिलिगुड़ी में एक उच्चस्तरीय बैठक की। बैठक में उत्तर बंगाल के चाय बागानों में सोलर पैनल और बैटरी यानी हाइड्रो स्टोरेज सिस्टम लगाने की व्यवहार्यता पर चर्चा हुई। इस संबंध में रब्बानी ने कहा, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हमेशा से चाय मजदूरों और बागानों के कल्याण को प्राथमिकता देती आयी हैं। इसलिए हम वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोतों को गंभीरता से खंगाल रहे हैं। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि नेट मीटरिंग और टैरिफ से जुड़ी कुछ नीतिगत अड़चनें हैं, लेकिन सरकार इन्हें हल करने की दिशा में सक्रिय है। उन्होंने चाय उद्योग से अपील की कि वह स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने में आगे आएं। टेरी ने दार्जिलिंग, सिक्किम और पूर्वोत्तर भारत के चाय बागानों में एग्री-पीवी और स्टोरेज को लेकर 12 महीने का एक अध्ययन प्रस्तावित किया है। जर्मनी की संस्था 'जीआईजेड' ने भी इस परियोजना के पायलट प्रोजेक्ट में सहयोग की पेशकश की है।
आखिर क्या है एग्री-पीवी?
इस तकनीक के जरिए एक ही ज़मीन पर खेती और सौर ऊर्जा उत्पादन—दोनों एक साथ किए जा सकते हैं। इससे भूमि की उत्पादकता 60 फीसदी तक बढ़ाई जा सकती है। जापान के एक चाय बागान में सफलतापूर्वक शेड नेट की जगह सोलर पैनल लगाए गए, जिससे मुनाफा बढ़ा और लागत घट गई। टेरी के मुताबिक, असम और पश्चिम बंगाल में कुल 25 गीगावाट तक एग्री-पीवी की संभावना है। इसके अलावा, चाय सुखाने और बागानों में हीटिंग की जरूरतों के लिए सोलर थर्मल सिस्टम भी कारगर साबित हो सकते हैं। अगर उत्तर बंगाल के चाय बागानों में एग्री-पीवी तकनीक सफल होती है, तो यह न केवल स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में बड़ा कदम होगा, बल्कि चाय उद्योग की लागत घटाकर उसका मुनाफा भी बढ़ सकता है।