डॉ.एम आर श्रीनिवासन (बायें) और डॉ. जयंत विष्णु नारलीकर  
टॉप न्यूज़

नहीं रहे खगोलविज्ञानी नारलीकर और परमाणुविज्ञानी श्रीनिवासन

देश ने खोये दो महान विज्ञानी

नयी दिल्ली : देश ने मंगलवार को अपने दो महान विज्ञानियों को खो दिया। प्रख्यात खगोल विज्ञानी पद्म विभूषण से सम्मानित डॉ. जयंत विष्णु नारलीकर का पुणे में और प्रसिद्ध परमाणु विज्ञानी और परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष पद्म विभूषण से सम्मानित एम आर श्रीनिवासन का उधगमंडलम (तमिलनाडु) में संक्षिपप्त बीमारी के बाद निधन हो गया।

नारलीकर ने जन जन तक विज्ञान को पहुंचाया

सरल तरीकों से विज्ञान को लोगों को रूबरू कराने वाले नारलीकर (86) मंगलवार को पुणे में निधन हो गया। पारिवारिक सूत्रों के अनुसार नारलीकर ने देर रात नींद में ही आखिरी सांस ली और मंगलवार सुबह अपनी आंख नहीं खोलीं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा की कि उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जायेगा। उनके परिवार में तीन बेटियां हैं।

नारलीकर ने विज्ञान को सरल रूप में लोगों तक पहुंचाया

अपने विज्ञानी अनुसंधान के अलावा डॉ. नारलीकर अपनी पुस्तकों, लेखों और रेडियो/टीवी कार्यक्रमों के माध्यम से विज्ञान को सरल रूप में लोगों तक पहुंचाने के लिए भी प्रसिद्ध हुए। वे अपनी विज्ञान आधारित कहानियों के लिए भी जाने जाते हैं। इन सभी प्रयासों के लिए 1996 में यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, विज्ञानी और सांस्कृतिक संगठन) ने उनके लोकप्रिय विज्ञान कार्यों के लिए उन्हें कलिंग पुरस्कार से सम्मानित किया था। डॉ. नारलीकर को 1965 में महज 26 वर्ष की उम्र में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया था।

श्रीनिवासन का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में उत्कृष्ट योगदान

परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) के सचिव रहे डॉ. एम आर श्रीनिवासन 95 वर्ष के थे और उनके परिवार में पत्नी और एक बेटी हैं। वे 1955 में डीएई से जुड़े और उन्होंने देश के पहले परमाणु अनुसंधान रिएक्टर, अप्सरा के निर्माण पर डॉ होमी भाभा के साथ काम करना शुरू किया था। उन्हें 1959 में भारत के पहले परमाणु ऊर्जा केंद्र के निर्माण के लिए प्रधान परियोजना अभियंता नियुक्त किया गया था।

देश के परमाणु कार्यक्रम को आकार देना जारी रखा

उनके नेतृत्व ने देश के परमाणु कार्यक्रम को आकार देना जारी रखा। उन्हें 1987 में उन्हें परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग का सचिव नियुक्त किया गया। उसी वर्ष वे भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (एनपीसीआईएल) के संस्थापक-अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में, 18 परमाणु ऊर्जा इकाइयां विकसित की गयीं - जिनमें से सात चालू थीं, सात निर्माणाधीन थीं और चार योजना के चरण में थीं। भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में उत्कृष्ट योगदान के लिए श्रीनिवासन को ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया था।

राष्ट्रपति, पीएम ने जताया शोक

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई प्रमुख हस्तियों ने डॉ. श्रीनिवासन और डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर के निधन पर शोक व्यक्त किया और कहा कि महत्वपूर्ण परमाणु बुनियादी ढांचे के विकास में उनकी उल्लेखनीय भूमिका भारत के ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने का आधार रही है।

SCROLL FOR NEXT