नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने 1990 के हिरासत में मौत के मामले में दोषी भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी संजीव भट्ट की जमानत याचिका मंगलवार को खारिज कर दी। इस मामले में भट्ट को उम्रकैद की सजा सुनाई गयी थी। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता के पीठ ने कहा कि मामले में जमानत या सजा के निलंबन संबंधी उनकी याचिका में कोई विशेष बात नहीं है। न्यायमूर्ति नाथ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘हम संजीव भट्ट को जमानत देने के पक्ष में नहीं हैं। जमानत की अर्जी खारिज की जाती है। अपील की सुनवाई प्रभावित नहीं होगी। अपील की सुनवाई में तेजी लाई जाती है।’ दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ संजीव भट्ट की अपील फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
संजीव भट्ट ने 2024 में गुजरात हाई कोर्ट के 9 जनवरी, 2024 के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसमें उनकी अपील खारिज कर दी गयी थी। हाई कोर्ट ने भट्ट और सह-अभियुक्त प्रवीणसिंह जाला की दोषसिद्धि को भी बरकरार रखा है। हाई कोर्ट ने गुजरात सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया था, जिसमें उन पांच अन्य अभिुक्तों की सजा बढ़ाने का अनुरोध किया गया था जिन्हें हत्या के आरोपों से बरी कर दिया गया था लेकिन धारा 323 और 506 के तहत दोषी ठहराया गया था।
तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक भट्ट ने 30 अक्टूबर, 1990 को अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की ‘रथ यात्रा’ को रोकने के खिलाफ ‘बंद’ के आह्वान पर जामजोधपुर शहर में हुए सांप्रदायिक दंगे के बाद लगभग 150 लोगों को हिरासत में लिया था। हिरासत में लिए गए लोगों में से एक प्रभुदास वैष्णानी की रिहाई के बाद अस्पताल में मौत हो गयी।
वैष्णानी के भाई ने संजीव भट्ट और 6 अन्य पुलिस अधिकारियों पर हिरासत में उसे प्रताड़ित करने और उसकी मौत का कारण बनने का आरोप लगाया। संजीव भट्ट को 5 सितंबर, 2018 को एक अन्य मामले में गिरफ्तार किया गया था, जिसमें उन पर एक व्यक्ति को मादक पदार्थ रखने के आरोप में झूठा फंसाने का आरोप है। मामले में मुकदमा जारी है। वह कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार के साथ 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में कथित तौर पर साक्ष्य गढ़ने के मामले में भी अभियुक्त हैं।