कोलकाता: एक 38 साल का युवक अपने हाथों कुरान लेता है उसे एक लाइटर के माध्यम से जला देता है। ये सब वो खुलेआम एक शहर के चौक पर करता है। जिसकी दूसरी तरफ मुस्लिमों की भीड़ उसे रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन वो नहीं मानता है और पुलिस की मौजूदगी में सरेआम दिन के उजाले में कुरान को जलाकर जमीन पर फेंक देता है। उसके बाद उसे अपने पैरों से रगड़ देता है।
सलवान मोमिका का ये वीडियो साल 2023 के जुलाई महीने में खूब वायरल हुआ था। इसके बाद से सलवान मोमिका सऊदी अरब, तुर्की समेत दुनियाभर के मुस्लिम देशों की आंखों में खटकने लगे थे। दुनियाभर में हजारों मुसलमान सड़कों पर उतर आए थे। जबकि ईराक ने तो स्वीडन से अपने राजनयिक को भी वापस बुला लिया था और स्वीडिश कंपनियों से कारोबार बंद कर दिया था। लेकिन, अब उसी सलवान मोमिका की तकरीबन 2 साल बाद उनके ही घर में घुसकर उन्हें गोली मार दी जाती है।
अब थोड़ा विस्तार से परत-दर परत समझते हैं मोमिका और उनकी कहानी को...
दरअसल बीते 29 जनवरी की शाम को सलवान मोमिका को स्वीडन के स्टॉकहोम के एक नजदीकी कस्बे में एक अपार्टमेंट में गोली मार दी गई। इस मामले को लेकर स्टॉकहोम पुलिस का कहना है कि इस सिलसिले में उन्होंने पांच लोगों को गिरफ्तार किया है।
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स्वीडिश मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मोमिका को जब गोली मारी गई तब वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टिकटॉक पर लाइव-स्ट्रीमिंग कर रहा था। रॉयटर्स को एक वीडियो मिला है, जिसमें पुलिस उसका फोन उठाकर लाइव स्ट्रीम बंद करती दिख रही है।
कौन था मोमिका और कहां आया उसे ये आइडिया?
कुरान को बार-बार जलाने वाले सलवान मोमिका जन्म उत्तरी इराक में स्थित शहर ताल अफ़र के एक रिफ्यूजी कैंप में एक ईसाई घर में हुआ था। वह बचपन से ही इस्लाम के खिलाफ मुखर था। जब वो बड़ा हुआ तब उसने इराक के पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्स से जुड़े एक मिलिशिया समूह इमाम अली ब्रिगेड (The Imam Ali Brigades) से जुड़ गया।
दरअसल इमाम अली ब्रिगेड एक ऐसा संगठन है, जिसकी स्थापना 2014 में हुई थी। इसे इस्लामिक स्टेट से लड़ने के लिए इराकी सेना ने पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्स के तहत कई संगठनों को एक साथ लाकर बनाया था। वहीं सलवान मोमिका ने 2017 में इराकी शहर मोसुल के बाहरी इलाके में अपना खुद का हथियारबंद समूह भी बना लिया था। जिसका उद्देश्य इस्लाम को खत्म करना था। तब सलवान मोमिका खुद को इराक में एक ईसाई मिलिशिया का प्रमुख बताने लगा था।
इराक छोड़कर स्वीडन में ली शरण
वहीं साल 2018 में इराक के एक शहर बेबीलोन के प्रमुख रेयान अल-कलदानी के साथ सत्ता संघर्ष के बाद उसे इराक छोड़ भागना पड़ा। वो इराक से भागकर पहले स्वीडन और बाद में नॉर्वे में शरण मांगना शुरू किया। उसे 2021 में स्वीडिश रेजीडेंसी परमिट दिया गया था, लेकिन स्वीडिश अधिकारियों के साथ उसके रिश्ते तनावपूर्ण हो गए। हालांकि, अप्रैल 2021 में शरणार्थी का दर्जा मिल गया था।
मुस्लिम या ईसाई कौन था मोमिका?
ईसाई से नास्तिक बना मोमिका पहले खुद को एक लेखक और नास्तिक बताता था। लेकिन, वह एक पूर्व-मुस्लिम की तरह व्यवहार करता था। पूर्व-मुस्लिम वे शख्स होते हैं, जो एक बार मुस्लिम के रूप में पहचाने जाते थे, लेकिन व्यक्तिगत कारणों, अलग विश्वासों या इसकी शिक्षाओं, प्रथाओं या सामुदायिक मानदंडों से मोहभंग के कारण धर्म छोड़ देते हैं।
किस तरह चर्चाओं में आया मोमिका?
मोमिका ने स्वीडन में शरण लेने के बाद 28 जून, 2023 को स्टॉकहोम की सबसे बड़ी मस्जिद के सामने ईद-उल-अजहा के दिन कुरान जला दिया था। इसी दौरान मोमिका ने कई इस्लाम-विरोधी प्रदर्शनों में जमकर हिस्सा लिया। दूसरी तरफ इस घटना के बाद स्वीडन के रिश्ते कई मुस्लिम देशों से खराब होने लगे क्योंकि स्वीडन पुलिस ने मोमिका को विरोध प्रदर्शन की मंजूरी दी थी, जिसमें उसने कुरान जलाया था। हालांकि, स्वीडन कानून के मुताबिक मोमिका का ये कृत्य स्वीडन के फ्री-स्पीच कानूनों का उल्लंघन नहीं करता था। इसलिए कानूनन वो अपराधी नहीं था।
हालांकि, मुस्लिम देशों के गुस्से के कारण स्वीडन उसे परमिट देने से इनकार कर दिया। स्वीडन ने कहा कि उसके पास कोई वैध दस्तावेज नहीं है, इसलिए उसे दोबारा परमिट नहीं दिया जाएगा। वहीं कुरान जलाने की घटना के बाद स्वीडन सलवान मोमिका को 2023 में वापस इराक भेजना चाहता था, जिसके लिए स्वीडन ने इराक से मोमिका के प्रत्यर्पण का अनुरोध किया, जिसे इराक ने अस्वीकार कर दिया। तब मोमिका ने नॉर्वे में शरण लेने की कोशिश की, लेकिन उसे वापस स्वीडन भेज दिया गया, जहां उसे एक साल का परमिट फिर से दिया गया था।
मोमिका का मामला पहुंचा संयुक्त राष्ट्र
जब मोमिका ने स्वीडन कुरान जलाया था। तब 11 जुलाई, 2023 को मुस्लिम देशों ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संगठन The United Nations Human Rights Council (UNHRC) में इसके खिलाफ प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव का भारत ने भी समर्थन किया था। वहीं इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी के प्रस्ताव का भारत ने समर्थन किया था। दरअसल इस प्रस्ताव के समर्थन में 28 और विरोध में 12 वोट पड़े। जबकि सात देश वोटिंग से दूर रहे थे। चीन, भारत, क्यूबा, दक्षिण अफ्रीका, यूक्रेन और वियतनाम जैसे देशों ने निंदा प्रस्ताव का समर्थन किया था। जबकि ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, कोस्टारिका, मोंटेनेगरो समेत यूरोपियन यूनियन ने निंदा प्रस्ताव का विरोध किया था। वहीं चिली, मेक्सिको, नेपाल, बेनिन, पैराग्वे जैसे देशों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया था।