जर्मनी में बनी सुरंग खोदने वाली मशीन ‘शक्ति’ -
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भारत की सबसे लंबी रेल सुरंग को आकार दे रहे जर्मनी से आये ‘शिव और शक्ति’

‘देवभूमि’ कहे जाने वाले राज्य की आध्यात्मिक विरासत से प्रेरित है मशीनों का नाम

नयी दिल्ली : हिमालय में सबसे चुनौतीपूर्ण परियोजनाओं में से एक, उत्तराखंड में निर्माणाधीन भारत की सबसे लंबी रेल सुरंग को जर्मनी में बनी सुरंग खोदने वाली मशीनें ‘शिव और शक्ति’ आकार दे रही हैं। इन मशीनों का नाम हिंदू देवताओं के नाम पर ‘शिव’ और ‘शक्ति’ रखा गया है, जो ‘देवभूमि’ कहे जाने वाले राज्य की आध्यात्मिक विरासत से प्रेरित है।

14.57 किलोमीटर लंबी सुरंगें

देवप्रयाग-जनसू जुड़वां सुरंगें हैं जो एक दूसरे से 25 मीटर की दूरी पर समानांतर चलती हैं। करीब 125 किलोमीटर लंबी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल संपर्क परियोजना की 14.57 किलोमीटर लंबी सुरंगों में से एक सुरंग को 16 अप्रैल को सफलतापूर्वक पूरा किया गया था, जिसकी खुदाई सुरंग बोरिंग मशीन (टीबीएम) ‘शक्ति’ द्वारा की गयी।

‘शिव’ से इस वर्ष जून में दूसरी सुरंग का काम भी पूरा होने की उम्मीद

निर्माण स्थल पर मौजूद अधिकारियों ने बताया कि टीबीएम ‘शिव’ से इस वर्ष जून में दूसरी सुरंग का काम भी पूरा होने की उम्मीद है। परियोजना से जुड़े अधिकारियों ने कहा कि पर्वतीय रेल परियोजना में पहली बार टीबीएम के उपयोग के लिए न केवल वृहद पैमाने पर कोशिश बल्कि विस्तृत योजना की भी आवश्यकता थी। उन्होंने कहा कि इसके साथ दैवीय कृपा की भी जरूरत थी और इस संदर्भ में टीबीएम का नाम देवताओं के नाम पर रखना परियोजना की सफलता के लिए उनके आशीर्वादों को प्राप्त करने का एक तरीका था।

मशीनों का नामकरण सामान्य प्रथा

सुरंग का निर्माण करने वाली अवसंरचना कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) ने निर्माण के दौरान आने वाली चुनौतियों को साझा करते हुए पहले कहा था कि ऐसे क्षण भी आये जब ऐसा लगा कि सुरंग ढह जायेगी और पूरी परियोजना खतरे में पड़ जायेगी लेकिन फिर उनके सावधानीपूर्वक प्रयासों और काम से इसे बचा लिया गया। निर्माण विशेषज्ञों ने कहा कि सुरंग खोदने वाली मशीन का नामकरण सभी बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में एक सामान्य प्रथा है। अक्सर इसको लेकर बहुत मंथन किया जाता है ताकि नाम परियोजना के कामकाजी माहौल के साथ अच्छी तरह से मेल खा सके। हिंदू धर्म में भगवान शिव को सर्वशक्तिमान देवता के रूप में पूजा जाता है और शक्ति को शिव की पत्नी पार्वती के रूप में माना जाता है जिन्हें मातृ शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

आरवीएनएल के तत्कालीन मुख्य परियोजना प्रबंधक ने सुझाये नाम

सुरंग के परियोजना निदेशक राकेश अरोड़ा ने कहा कि चूंकि उत्तराखंड को अनेक हिंदू तीर्थ स्थलों, पवित्र मंदिरों और नदियों की उपस्थिति के कारण ‘देवभूमि’ के रूप में जाना जाता है, इसलिए इन विषयों पर बहुत सारे सुझाव आये। रोड़ा ने कहा कि शुरू में कुछ सदस्यों ने यह विचार रखा था कि इनका नाम दो पवित्र नदियों - अलकनंदा और भागीरथी के नाम पर रखा जाये क्योंकि ये दोनों नदियां सुरंग के करीब से बहती हैं। कुछ लोगों ने इन्हें बदरी और केदार नाम देने का भी सुझाव दिया, क्योंकि यहां दो सबसे प्रतिष्ठित मंदिर हैं - बदरीनाथ और केदारनाथ हैं, जहां लाखों श्रद्धालु आते हैं। उन्होंने याद किया कि सभी को जो नाम सबसे अच्छे लगे, वे थे शिव और शक्ति थे, जो रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) के तत्कालीन मुख्य परियोजना प्रबंधक हिमांशु बदायूंनी द्वारा सुझाये गये थे।

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