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Manipur में लगा राष्ट्रपति शासन, जानें इसके बारे में सब कुछ

134वीं बार देश में लागू हुआ राष्ट्रपति शासन

नई दिल्ली -  मणिपुर में एन बीरेन सिंह के रविवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद, गुरुवार को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद पार्टी सर्वसम्मति से नया मुख्यमंत्री नहीं चुन पाई, जिसके चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का कदम उठाया गया।

बीजेपी मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू करने से बच रही थी, क्योंकि पार्टी सैद्धांतिक रूप से इसके खिलाफ रही है। मणिपुर में मई 2023 से जारी हिंसा के बाद बीरेन सिंह को कम समर्थन मिलने लगा था। इसके अलावा, पार्टी के अंदर भी कई नेताओं ने उनकी आलोचना की थी।

अनुच्छेद 356 के तहत लगाया जाता है राष्ट्रपति शासन

संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है। इस अनुच्छेद के तहत, राष्ट्रपति शासन के लागू होने से राज्य सरकार के सभी कार्य केंद्र को और राज्य विधानमंडल के कार्य संसद को सौंप दिए जाते हैं। हालांकि, न्यायपालिका की कार्यप्रणाली वैसी की वैसी बनी रहती है।

अब तक 134 बार राष्ट्रपति शासन लागू किया जा चुका है

1950 में संविधान के लागू होने के बाद से 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 134 बार राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है। इनमें सबसे अधिक बार मणिपुर और उत्तर प्रदेश में 10-10 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया है। हालांकि, ये राज्य वे नहीं हैं, जिनमें राष्ट्रपति शासन सबसे लंबे समय तक जारी रहा।

जम्मू-कश्मीर, पंजाब और पुडुचेरी सबसे लंबे समय तक राष्ट्रपति शासन के तहत रहे हैं। 1950 के बाद से, जम्मू-कश्मीर ने राष्ट्रपति शासन के तहत 12 साल (4,668 दिन) से अधिक समय बिताया, जबकि पंजाब ने 10 साल (3,878 दिन) से अधिक समय तक केंद्रीय नियंत्रण में रहकर राष्ट्रपति शासन देखा। इन राज्यों में उग्रवादी और अलगाववादी गतिविधियों के साथ-साथ अस्थिर कानून व्यवस्था की स्थितियों के कारण राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था।

मणिपुर से पहले, 2021 में पुडुचेरी में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था, जब यहां कांग्रेस सरकार विश्वास मत में असफल होकर सत्ता से बाहर हो गई थी। पुडुचेरी ने अपने इतिहास में राष्ट्रपति शासन के तहत 7 साल (2,739 दिन) से अधिक समय बिताया, और इसका प्रमुख कारण विधानसभा में आंतरिक कलह या दलबदल के चलते सरकारों का समर्थन खोना था।

सुप्रीम कोर्ट का इस पर क्या कहना है ?

सुप्रीम कोर्ट ने एसआर बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) मामले में राष्ट्रपति शासन लगाने की शक्ति और केंद्र-राज्य संबंधों पर गहन सुनवाई की थी। यह मामला उस समय अदालत में आया था, जब केंद्र ने कई बार राष्ट्रपति शासन लागू किया और राज्य सरकारों को बर्खास्त किया था। 9 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति द्वारा लगाए गए राष्ट्रपति शासन की शक्ति न्यायिक समीक्षा के दायरे में आती है।

हालांकि, अदालतें यह जांच सकती हैं कि यह निर्णय अवैध, दुर्भावनापूर्ण, बाहरी प्रभावों से प्रभावित, शक्ति के दुरुपयोग या धोखाधड़ी से ग्रस्त तो नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि वह राष्ट्रपति के फैसले की वैधता पर विचार नहीं कर सकती, लेकिन यह जांच सकती है कि राष्ट्रपति को दी गई रिपोर्ट राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए उचित थी या नहीं।

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