नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केरल हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी, जिसमें राजनीतिक दलों को कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (पॉश एक्ट) के दायरे में लाने से इनकार कर दिया गया था। देश के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले में सुनवाई की। पीठ में जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर शामिल थे। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों और उनके सदस्यों के बीच नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं होता, इसलिए इस कानून को उन पर लागू करना संभव नहीं है। सीजेआई गवई ने कहा कि जब कोई व्यक्ति राजनीतिक दल से जुड़ता है तो यह नौकरी नहीं होती। इसमें न तो रोजगार मिलता है और न ही भुगतान होता है। इसलिए राजनीतिक दल को कार्यस्थल की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
केरल हाईकोर्ट से जुड़ा मामला : यह मामला केरल हाईकोर्ट के एक आदेश से जुड़ा था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राजनीतिक दल पॉश एक्ट के तहत आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) बनाने के लिए बाध्य नहीं हैं, क्योंकि इस अधिनियम का दायरा केवल उन संस्थाओं तक है जहां रोजगार और भुगतान का रिश्ता हो। हाईकोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। जिसे मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने अपील को खारिज करते हुए हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि राजनीतिक दलों की संरचना और उनका कार्यप्रणाली रोजगार से भिन्न है।
फैसले का असर : इस फैसले के बाद राजनीतिक पार्टियों को अब पॉश एक्ट का पालन करने की बाध्यता नहीं होगी। इसका सीधा असर यह होगा कि अगर किसी महिला सदस्य को पार्टी से जुड़े कार्यकलापों में उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, तो वह आईपीसी और अन्य आपराधिक कानूनों के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है लेकिन पॉश एक्ट का सहारा नहीं ले पाएगी। हालांकि, वह आईपीसी और अन्य आपराधिक कानूनों के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है।