सन्मार्ग संवाददाता
नदिया : साहित्यकार विभूतिभूषण बनर्जी के कालजयी उपन्यास "चांदेर पहाड़" को पढ़ने वाला हर शख्स एक न एक बार उस पहाड़ तक पहुंचने की कल्पना करता है मगर नदिया के ज्योतिष्क विश्वास ने अपनी इस कल्पना को हकीकत में बदल दिया। विभूतिभूषण बनर्जी की अमर रचना को हाथ में लेकर ही ज्योतिष्क अफ्रीका के प्रसिद्ध रोयेंनजोरी पर्वत पर पहुंचे। उनके साथ किताब पर एक नोट भी था, जिस पर लिखा था 'विभूतिभूषण बनर्जी को श्रद्धांजलि' जिसे उन्होंने अपने सोशल मीडिया साइट पर शेयर किया है। इस सफर में उनके साथ एक साइकिल भी थी। नदिया के करीमपुर स्थित जामताड़ा निवासी ज्योतिष्क विश्वास के पिता सेना के पूर्व अधिकारी हैं। उन्हें बचपन से ही घूमने का शौक रहा है। अपने पिता के पेशे के चलते उन्होंने भारत के विभिन्न राज्यों की यात्राएँ की हैं। साइकिल चलाने का शौक रखने वाले इस युवक ने हिमालय से लेकर कई जगहों की यात्राएं की हैं लेकिन उसका मुख्य लक्ष्य विभूतिभूषण द्वारा लिखित 'चांदेर पहाड़' को फतह करना था, जिसे उसने बचपन में पढ़ा था। अपने पास की गयी कुछ सेविंस के साथ उन्होंने जून में यह यात्रा शुरू की। गंतव्य था रेलवे मुख्यालय बोम्बासा, पूर्व अफ्रीका। लगभग सौ साल पहले विभूतिभूषण के उपन्यास के प्रमुख किरदार 'शंकर' ने यहीं से 'चांदेर पहाड़' की ओर अपनी यात्रा शुरू की थी। उपन्यास में वर्णित रास्तों को ही मार्गदर्शन मानकर ज्योतिष्क ने रोयेंनजोरी पर्वत पर विजय प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने एक वीडियो संदेश भी साझा करते हुए कहा कि यह पर्वत युगांडा और कांगो की सीमा पर स्थित है। एक पूरी पीढ़ी की खुशहाली का कारण विभूतिभूषण बनर्जी की पुस्तक "चांदेर पहाड़" है। वह इस पुस्तक के लेखन के लिए विभूतिभूषण बनर्जी का आभार व्यक्त करते हैं।