नई दिल्ली : भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने रविवार को कहा कि दक्षिण-पश्चिम मानसून के 27 मई को केरल पहुंचने की संभावना है, जो आमतौर पर 1 जून को दस्तक देता है।
आईएमडी के आंकड़े के अनुसार, यदि मानसून केरल में उम्मीद के अनुरूप पहुंचता है, तो यह 2009 के बाद से भारतीय मुख्य भूमि पर मानसून का समय से पहले आगमन होगा। तब मानसून 23 मई को आया था। आमतौर पर, दक्षिण-पश्चिम मानसून 1 जून तक केरल में दस्तक देता है और 8 जुलाई तक पूरे देश में छा जाता है। यह 17 सितंबर के आसपास उत्तर-पश्चिम भारत से पीछे हटना शुरू कर देता है और 15 अक्टूबर तक पूरी तरह से वापस चला जाता है।
आईएमडी ने अप्रैल में 2025 के मानसून में सामान्य से अधिक कुल वर्षा का पूर्वानुमान जताया था और अल नीनो परिस्थितियों की संभावना को खारिज कर दिया था, जो भारतीय उपमहाद्वीप में सामान्य से कम वर्षा से जुड़ी है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में सचिव एम रविचंद्रन ने कहा था,‘भारत में चार महीने के मानसून (जून से सितंबर) में सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है।’ आईएमडी ने बताया कि आमतौर पर 1 जून को केरल पहुंचने के बाद मानसून 8 जुलाई तक अन्य राज्यों को कवर करता है। 17 सितंबर के आसपास राजस्थान के रास्ते वापसी शुरू करता है और 15 अक्टूबर तक पूरा हो जाता है।
जून से सितंबर के बीच ज्यादा बारिश की संभावना
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सेक्रेटरी एम रविचंद्रन ने कहा कि जून से सितंबर के दौरान मानसून सीजन में सामान्य से ज्यादा बारिश होने की संभावना है। 4 महीने के दौरान 87 cm के औसत से 105 फीसदी बारिश हो सकती है। आमतौर पर 96 से 104 फीसदी बारिश को सामान्य माना जाता है। 90 फीसदी से कम बारिश को सामान्य से बहुत कम, 90 से 95 फीसदी के बीच सामान्य से कम, 104 से 110 फीसदी के बीच सामान्य से ज्यादा और 110 फीसदी से ज्यादा बारिश बहुत ज्यादा माना जाता है।
अंडमान और निकोबार में मानसूनी बारिश अगले हफ्ते तक शुरू हो सकती है। मौसम विभाग के मुताबिक, अंडमान निकोबार के हिस्सों में 13 मई तक मानसून के प्रवेश का अनुमान है। आईएमडी के एक अधिकारी ने कहा कि मानसून के दौरान देशभर में होने वाली कुल वर्षा और शुरुआत की तारीख के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है। केरल में जल्दी या देर से आने वाले मानसून का मतलब यह नहीं है कि यह देश के अन्य हिस्सों को भी उसी तरह कवर करेगा।
सन् 1972 में सबसे देरी से केरल पहुंचा था। आईएमडी के आंकड़ों के मुताबिक, बीते 150 साल में मानसून के केरल पहुंचने की तारीखें काफी अलग रही हैं। 1918 में मानसून सबसे पहले 11 मई को केरल पहुंच गया था, जबकि 1972 में सबसे देरी से 18 जून को केरल पहुंचा था।
भारत में कृषि क्षेत्र के लिए मानसून बहुत जरूरी है। देश की लगभग 42.3% आबादी कृषि पर निर्भर है और यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 18.2% योगदान देता है। मानसून में अच्छी बारिश पीने के पानी और बिजली उत्पादन के लिए भी जरूरी है। देश में सालभर में होने वाली कुल बारिश का 70% पानी मानसून के दौरान ही बरसता है। देश में 70% से 80% किसान फसलों की सिंचाई के लिए बारिश पर ही निर्भर हैं। यानी मानसून के अच्छे या खराब रहने से पैदावार पर सीधा असर पड़ता है। अगर मानसून खराब हो तो फसल कम पैदा होती है, जिससे महंगाई बढ़ सकती है। अच्छी बारिश का मतलब है कि खेती से जुड़ी आबादी को फेस्टिव सीजन से पहले अच्छी आमदनी हो सकती है। इससे उनकी खर्च करने की क्षमता बढ़ती है, जो इकोनॉमी को मजबूती देती है।