नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने ‘रिसडिप्लाम’ दवा बनाने वाली कंपनी से पूछा है कि क्या दुर्लभ रोग ‘स्पाइनल मस्कुलर अट्रोफी’ (एसएमए) के उपचार के लिए यह दवा भारत में कम कीमत पर उपलब्ध करायी जा सकती है जबकि पड़ोसी देशों पाकिस्तान और चीन को यह दवा सस्ती दर पर उपलब्ध करायी जाती है।
दवा निर्माता कंपनी से जवाब तलब
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन के पीठ ने दवा निर्माता कंपनी से जवाब मांगा, जब उसे इस दुर्लभ बीमारी से पीड़ित 24 वर्षीय महिला की ओर से पेश वकील ने बताया कि दवा निर्माता ‘मेसर्स एफ हॉफमैन-ला रोश लिमिटेड’ द्वारा भारत के मुकाबले अन्य जगहों पर सस्ती दर पर दवा बेची जा रही है। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि विवाद की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, हम रिसडिप्लाम दवा के निर्माता ‘मेसर्स एफ. हॉफमैन-ला रोश लिमिटेड’ को नोटिस जारी करना उचित समझते हैं, जो अगली सुनवाई की तिथि पर इस न्यायालय को पड़ोसी देशों में उक्त औषधि के लिए निर्धारित मूल्य से अवगत करायेगा।
अगली सुनवाई आठ अप्रैल को
यदि इस दवा का मूल्य भारत की तुलना में (अन्य देशों में) कम है, तो न्यायालय को यह भी सूचित किया जायेगा कि क्या भारत में भी दवा की उसी कम मूल्य पर आपूर्ति की जा सकती है। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने पीठ को बताया कि एसएमए रोगियों के लिए दवा की कीमत पाकिस्तान और चीन में अपेक्षाकृत सस्ती है क्योंकि वहां की सरकारों ने इसमें हस्तक्षेप किया है। ग्रोवर ने दलील दी कि भारत सरकार वैश्विक दवा निर्माता कंपनी के साथ इस दुर्लभ बीमारी की दवा सस्ती दर पर उपलब्ध कराने के लिए बातचीत क्यों नहीं कर सकती। शीर्ष न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई आठ अप्रैल के लिए सूचीबद्ध की।