नयी दिल्ली : केंद्र ने देशभर के ग्रामीण इलाकों में श्रमिकों को रोजगार की गारंटी देने वाली महत्वाकांक्षी योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) पर पहली बार खर्च सीमा की पाबंदी लगायी है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली छमाही में मनरेगा के तहत होने वाले खर्च को कुल वार्षिक आवंटन का 60 फीसदी तक सीमित कर दिया है। अब तक इस योजना में खर्च की कोई सीमा तय नहीं थी और यह मांग के आधार पर संचालित योजना रही है।
खर्च को मासिक/त्रैमासिक व्यय योजना के तहत लाया जायेगा
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वित्त मंत्रालय ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को सूचित किया है कि अब इस योजना के तहत होने वाले खर्च को मासिक/त्रैमासिक व्यय योजना के तहत लाया जायेगा, जो एक खर्च पर नियंत्रण का एक तरीका है। हालांकि इस योजना को अब तक इस तरह के नियंत्रण उपायों से छूट मिली हुई थी। पिछले महीने वित्त मंत्रालय ने सभी मंत्रालयों के तहत कैश फ्लो और गैर जरूरी उधारी को कम करने और उसे नियंत्रित करने के लिए 2017 में मासिक/त्रैमासिक व्यय योजना की शुरुआत की थी लेकिन मनरेगा स्कीम को इससे बाहर रखा था।
मनरेगा के लिए कुल बजट आवंटन 86,000 करोड़ रुपये
गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2025-26 में मनरेगा के लिए कुल बजट आवंटन 86,000 करोड़ रुपये है। सरकार की नयी व्यवस्था के अनुसार पहली छमाही में अब 51,600 करोड़ रुपये ही खर्च करने होंगे। अधिकारियों के अनुसार पिछले वित्त वर्ष का करीब 21,000 करोड़ रुपये देनदारियों के रूप में लंबित है। ऐसे में नये आदेश से इस साल राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत रोजगार सृजन प्रभावित हो सकता है और रोजगार के अवसर कम हो सकते हैं।