देश में 6 साल से कम उम्र के 8.19 करोड़ बच्चों में से 35.91 प्रतिशत कम लंबाई वाले 
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13 राज्यों के 63 जिलों में आधे से अधिक बच्चे छोटे कद के

कम लंबाई की सबसे बड़ी वजह कुपोषण, संसद को प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण

नयी दिल्ली : संसद में प्रस्तुत कई दस्तावेजों के विश्लेषण से पता चला है कि उत्तर प्रदेश के 34 जिलों सहित 13 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 63 जिलों के आंगनवाड़ी केंद्रों में नामांकित 50 प्रतिशत से अधिक बच्चों की लंबाई उनकी उम्र के लिहाज से कम है। बच्चों की लंबाई कम रहने के पीछे कई कारक हो सकते हैं जिनमें दीर्घकालिक या बार-बार होने वाला कुपोषण भी शामिल है। विश्लेषण से यह भी पता चला है कि 199 जिलों में कम लंबाई का स्तर 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत के बीच है।

महाराष्ट्र का नंदुरबार सर्वाधिक प्रभावित जिला

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के जून 2025 के पोषण ट्रैकर पर आधारित आंकड़ों के अनुसार उम्र के लिहाज से बच्चों की लंबाई कम होने के उच्चतम स्तर वाले कुछ सर्वाधिक प्रभावित जिलों में महाराष्ट्र का नंदुरबार (68.12 प्रतिशत), झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम (66.27 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश का चित्रकूट (59.48 प्रतिशत), मध्य प्रदेश का शिवपुरी (58.20 प्रतिशत) और असम का बोंगाईगांव (54.76 प्रतिशत) शामिल है। उत्तर प्रदेश इस सूची में सबसे ऊपर है, जहां 34 जिलों में इस समस्या का स्तर 50 प्रतिशत से अधिक है, इसके बाद मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार और असम का स्थान है।

6 साल तक की उम्र वाले बच्चों में 35.91% कम लंबाई वाले

मंत्रालय ने कई सवालों के जवाब में बताया कि आंगनवाड़ी केंद्रों में 0-6 साल की उम्र के 8.19 करोड़ बच्चों में से 35.91 प्रतिशत बच्चे कम लंबाई वाले हैं और 16.5 प्रतिशत कम वजन के हैं। पांच साल से कम उम्र के बच्चों में उम्र के मुकाबले लंबाई कम होने की व्यापकता और भी ज्यादा यानी 37.07 प्रतिशत है। कम वजन वाले बच्चों के मामले में भी स्थिति उतनी ही गंभीर है। महाराष्ट्र के नंदुरबार में 48.26 प्रतिशत बच्चों का वजन कम दर्ज किया गया, जो प्रतिशित आंकड़े के लिहाज से देश में सबसे अधिक है। इसके बाद मध्य प्रदेश के धार (42 प्रतिशत), खरगोन (36.19 प्रतिशत) और बड़वानी (36.04 प्रतिशत), गुजरात के डांग (37.20 प्रतिशत), डूंगरपुर (35.04 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ के सुकमा (34.76 प्रतिशत) जिले हैं।

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